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पातर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.पुात्र
1.राजस्थान में रहने वाली वेश्याओं में एक जाति की हिन्दू वेश्या।
  • उदा.--कुकड़ा रौ गुण कांम, काक गुण भक्षण कीनौ। जुध करण रौ जोध, स्वांन गुण सांप्रत लीनौ। अणपढ़ियां में आंण, खरौ गुण लीनौ खर रौ। धाड़ा, चोरी, धरम, घमंड गुण कीनौ धर रौ। मद-पांन मगन मांदा रहै, देय हकीमां दांन जू। परणी तज पातर रखै, खरा गुणां री खांन जू।--ऊ.का.
2.देखो 'पातरौ' (मह., रू.भे.)
4.देखो 'पात्र' (रू.भे.)
रू.भे.
पातरु, पातुर, पात्र।
अल्पा.
पातुरी।
विशेष विवरण:-देखो 'वेश्या'।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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