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पाल  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.पुट
1.तम्बू, सामियाना।
  • उदा.--चिग पड़दारू पाल चमंकै। दांमण जांण सिळाउ दमंकै।--सू.प्र.
2.नाव के मस्तूल लगा कर बांधा जाने वाला कपड़ा। क्रि.प्र.--खोलणौ, तांणणौ, बांधणौ।
3.टाट का लम्बा-चौड़ा कपड़ा जो प्राय: बिछाने के काम आता है। (सं.पुल्लि:, पल्ली)
4.भीलों की बाहुल्यता वाला गांव। (मेवाड़)
  • उदा.--पाबा गढ इलाखा जोडे बाहिर पारौ इलाखौ। चोवला भीलां री पाल अनेक येक ही नीकौ।--केहर प्रकास
4.मना करने या रोकने की क्रिया या भाव।
5.भूसा, घास आदि बिछा कर बनाया गया फलों को पकाने का स्थान। क्रि.प्र.--दैणौ।
6.देखो 'फाल' (रू.भे.)
  • उदा.--तठे हीरण पाल सांधनै बाग री भींत कुदीयौ। तठै पातसाह लारै भागौ।--रीसाळू री वात


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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