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पावन  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
1.पवित्र, शुद्ध।
  • उदा.--1..पावन ह्रदौ करिस पुरुसोत्तम। संच गिनांन तूझ स्री संगम।--ह.र.
  • उदा.--2..पावन हुवौ न पीठवौ, न्हाय त्रिवेणी नीर। हेक 'जेत' मिळियां हुवौ, सो निकळंक सरीर।--बां.दा.
  • उदा.--3..गळ मुंडमाळ मसांण ग्रह, संग पिसाच समाज। पावन तूझ प्रताप सूं, संभु अपावन साज।--बां.दा.
2.पवित्र करने वाला। सं.पु.(सं.)
1.प्रथम सात सगण और अंतिम लघु गुरु वर्ण का छंद विशेष।
  • उदा.--सात सगण लघु गुरु सहित, एकणि पाए आंणि। पाट कुंवर 'लखपति' रा, पावन छंद पछांणि।--ल.पिं
2.परमेश्वर (ह.नां.मा.)।
3.गोबर।
4.रुद्राक्ष।
5.चंदन।
6.सिद्ध पुरुष।
7.विष्णु। सं.स्त्री.--
8.राजाओं की दासियां विशेष। वि.वि.--ये दासियां पतियों के मरने पर चूड़ा (अहिवात) न उतार कर राजाओं के मरने पर उतारती हैं। इनका सुहाग राजाओं के लिए होता है।
रू.भे.
पावण, पावन्न।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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