सं.पु.
सं.पुिण्डम् या पिण्ड:
1.कोई गोलमटोल टुकड़ा।
2.कोई द्रव्य खण्ड, ठोस टुकड़ा।
4.गया, हरिद्वार, पुष्कर, सोरों आदि तीर्थों में पितरों की अस्थि विसर्जन करने के लिए बनाया जाने वाला आटे का गोला।
- उदा.--परागजी आय मकर रौ नाहण करि फेर पाछा जाय कुंवर रा पिंड भरायां पछै वैदनाथजी जगन्नाथजी परस मारकंडेय कुंड तरपण किया।--पलक दरियाव री वात
5.श्राद्ध में पितरों को अर्पण करने हेतु पके हुए चावलों का हाथ से बनाया हुआ गोला।
6.युद्ध में वीरगति प्राप्त करने की अवस्था में घायल योद्धा द्वारा पितरों को अपर्ण करने हेतु अपने खून से बनाया जाने वाला मिट्टी का गोला।
- उदा.--तठै पडि खेत किया पिंड तत्र। रिणां जळ गंग समेळ रगत्र।--सू.प्र.
अल्पा.
पिंडी, पिंडोळी मह.--पिंडांण।
7.शरीर, देह (अ.मा.), (ह.नां.मा.)
- उदा.--1..ताहरां वीरमदे कह्यौ--'जाह रे हरदास! तें म्हारौ पांच हजार रौ घोड़ौ बढ़ायौ'। ताहरां हरदास कह्यौ--'कुरजपूत! म्हैं म्हारौ पिंड ही वढायौ'।--नैणसी
- मुहावरा--1.पिंड छुडाणौ--किसी का पीछा छुड़ाना
- मुहावरा--2.पिंड छोडणौ--साथ लगा न रहना।
- मुहावरा--3.पिंड पड़णौ--पीछे पड़ना।
10.देखो 'पांडव' (रू.भे.)
- उदा.--कुरु पिंड वेध वसुधा, अपण मंझेण झुज्जयौ उभए। कुरखेत जुद्ध समयौ, विणसिण काळ बुद्ध विपरीती।--गु.रू.बं.
रू.भे.
पड, पांड, पिंडि, प्यंड।
अल्पा.
पिंडौ, पिंडोळी। मह.--पींड।