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पुनुं, पुनु, पुन्न  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'पुण्य' (रू.भे.)
  • उदा.--1. जाचक हिरन तिसाया जावै, पुन्न नीर सपने नहिं पावै।--ऊ.का.
  • उदा.--2..नहीं तू जोग नहीं तू जाप। नहीं तू पुन्न नहीं तू पाप।--ह.र.
  • उदा.--3..पुन्न गया परवार, सज्जन साथ छूट्‌या जदे। दुरजण जण री लार, रोता फिरवै राजिया।--कृपाराम बारहठ (खिड़िया)
  • उदा.--4..नाज पुरांणौ घी नयौ, आग्याकारी नार। पंथ तुरी चढ चालणौ, पुन्न तणा फळ च्यार।--अज्ञात
2.देखो 'पूरण' (रू.भे.)
  • उदा.--पुन्न प्रभावि हिं पांमियउ पहिंलु कुंतादेवि। पुन्न मणोरहु पूत्त पुण सुमिणां पंच लहेवि।--पं.पं.च.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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