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पून  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'पवन' (रू.भे.)
  • उदा.--जीण मेरी बाई ये, तिसियौ मैं पीसूं ठंडी पून। जांमण की ये जायी, भूखौ मैं चाबूं ये बन रा पांनड़ा।--लो.गी.
2.देखो 'पूंद' (रू.भे.)
  • उदा.--गाजर मेवौ कांस खड़, पुरख ज पून उघाड़। ऊंधा ओझर अस्तरी, अइ हो घर ढूंढाड़।--अज्ञात
3.देखो 'पुण्य' (रू.भे.)
  • उदा.--पैलै भव रै पून, जिकौ इण भव मो जुड़ियौ। पोह जिण रै परताप, अछत नह कु आभड़ियौ। पांणी खत्रवट पूर, भलम जसवास भळाहळ। रहत दुख अणरेह, यळा मालम चित्त ऊजळ।--पहाड़खां आढ़ौ
4.देखो 'पूरणिमा' (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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