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प्रसन्न  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
1.खुश, संतुष्ट।
  • उदा.--1..सु देवराज सूं सांमी प्रसन्न हुय नै कह्यौ--वात हुइ सो म्है जांणी।--नैणसी
  • उदा.--2..अरी न अप्रसन्न ह्वै प्रसन्न में बडौ बिभौ।--ऊ.का.
2.जो किसी के कार्य या बात तथा गुणों को देखकर संतुष्ट और हर्षित हुआ हो।
  • उदा.--स्रम थोड़ै वोह नफौ सांपजै, बीसर मती अनोखी बात। रहै प्रसन्न ऐ आयस रीधै, छात सिधां नरपतियां छात।--बां.दा.
रू.भे.
परसण, परसन, परसन्न पसंद, पसन्न, प्रसण, प्रसन, प्रासन्न।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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