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प्रेत     (स्त्रीलिंग--प्रेतण, प्रेतणी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.पुरेत:
1.मरा हुआ मनुष्य।
2.वह कल्पित शरीर जो मनुष्य को मृत्यु के बाद प्राप्त होता है। (पुराण)
3.नरक में रहने वाला प्राणी।
4.एक प्रकार की कल्पित देवयोनि जिसमें प्राणी का रंग काला शरीर के बाल खड़े और विकराल स्वरूप होता है, भूत।
  • उदा.--1..हुय धड़धड़ा'ट धर व्योम हाक। दस ही दिस वागी प्रेत डाक।--पा.प्र.
  • उदा.--2..पहली एक धाडवी रजपूत धारातीरथ में पड़ियौ तौ भी कोइक कारण रै प्रभाव आप रा साथ समेत प्रेत हुवौ जिकण रै पाछै प्रजा में एक पुत्री रही।--वं.भा.
  • उदा.--3..जठै बैताळा रा आस्फाळ, डाकिणी गणां रा डमरू रा डात्कार फेरवियां रा फेत्कार, प्रेतां रा आलाप राक्षसां रा रास कुणपां रा कपाळां रा कटकटाहट, चिता रा अंगारां करि चित्र बिचित्र बडौ अद्‌भुत चरित देखियौ।--वं.भा.
यौ.
भूत-प्रेत।
5.महाकृपण, कंजूस। (व्यंग)
रू.भे.
परेत, प्रैत।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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