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फर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.पीठ।
2.पर्वत या तालाब की मेंढ़ का वह भाग जो भूमि को स्पर्श करता है, तलहटी।
  • उदा.--डहलाए दद्दर हींसै हैमर फूटि सरोवर पाळ फरं।--गु.रू.बं.
3.पशु के अगले पैर और धड़ से जुड़ने के संधिस्थान के अंदर का भाग।
  • उदा.--महांराणौ जी एक इका नै पातसा रा हाथी आगै वहतां मार नीसारिया तठै इका री तरवार घोड़ा रै फर में पड़ी आगलौ डावौ पग उठै हीज पड़ियौ।--वीर सतसई की टीका
4.ढाल।
  • उदा.--1..आंणी असह जडाळी आहव, फूटती धोह में फर। हुय तौ कळह 'कुंभक्रन' होयै, न तौ असुर सर नर अवर।--महारांणा कुंभा रौ गीत
  • उदा.--2..थें भो पासे धन देख वाहर कर आया सो फर ढाल नैं तीरां तीर लीधां आपरै भुजाआं रै भरोसे हां, जकण रै हीज पांण धरती रा धन खावां हां।--वीर सतसई की टीका
5.बाण में तीर का अग्र नुकीला भाग।
  • उदा.--पे'लै पार बेर बींद झराये बेवांणां परी, सोक सरां वायकुंडां पुराये सादीह। फरां फाड़ै सत्रां तोड़ै चुराये भालडां फूटै, अेके-राड़ै फतै जांगी घुराये अबीह।--गंभीरसिंघ सोळंकी रौ गीत
6.ढलवां भू-भाग, ढलाव।
7.झूंठी प्रशंसा करना, बढ़ा-चढ़ा कर कहना। क्रि.प्र.--मारणी।
8.चिड़िया के उड़ने से परों से उत्पन्न ध्वनि।
  • उदा.--चिड़ी तौ फर करती उठा सूं उडगी।--फुलवाड़ी
9.देखो 'फल' (रू.भे.)
  • उदा.--आंपण पांन फर मेल्हिया ईसर, मोटै सुपर दियंता मांन।--महादेव पारवती री वेलि
(सं.फलकं)
(सं.फलम्‌)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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