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बंगड़ी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
देशज
1.एक प्रकार का आभूषण जिसे स्त्रियें हाथ की कलाई पर पहनती हैं।
  • उदा.--1..अर परिणांम रै समय हजारां बीबियां रा हाथ बंगड़ी बिहूणा करि काचरा कुंभ जिम ऊजळा लोहा खंड--खंड होय परलोक पायौ।--वं.भा.
  • उदा.--2..जळै आप रै रोस अैसा जुअंनं, त्रिणा मात्र जांणै धणी कांमि तंनं। सबद्दां जिकै वेध धांनंख साधी, बळट्ठी हणै बंगड़ी बाळ बांधी।--वचनिका
यौ.
बंगड़ीदार।
2.एक प्रकार का खिलौना, फिरकी।
3.नैचा के मध्य का उठा हुआ गोलाकार भाग।
4.देखो 'बंगड़' (अल्पा., रू.भे.)
  • उदा.--तांह गजराजां रा ऊजळा दांतूसळ बंगड़ीआं सूं जड़िआ छै। जांणै घटा बीच बगलां री जोड़ी वडी दीसै छै।--रा.सा.सं.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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