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बरकत, बरकत्त  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
अ.बरकत
1.वह शुभ स्थिति जिसमें किसी पदार्थ की बहुलता व अभीष्टता हो, जिसमें मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो सकती हो, गुजारा होने की स्थिति।
2.निवहि, गुजारा।
3.बचत।
  • उदा.--एक चून चावळ किणक, मैदा बरकत करी ए विनायक कोथहड़ी द्रव्य देइयौ विनायक लाडली के बाप नै।--लो.गी.
4.लाभ, फायदा, वृद्धि।
  • उदा.--1..सरवर सारू जळ रहै, पिंड सारू परकत। कर सारू कीरत रहै, मान सारू बरकत।--अज्ञात
  • उदा.--2..अधिकार तणौ जिंहां नहीं अमल। कहौ तिण में बरकत किसी।--ध.व.ग्रं.
5.गुंजाईश, क्षमता।
  • उदा.--तिण ऊपर महाजनां विचारौ--'किरोड़ी में घणी बरकत काई नहीं। नै सीसोदियौ छाजू, सिवो चंद्रावत, अै वडा रजपूत छै।, नै वडा भोमियां छै, यांनूं गांव रौ सांसर सूंपां तौ अै जतन करैं--नैणसी
6.अनुग्रह, कृपा, प्रसाद।
7.प्रारम्भ, शुरुआत।
8.गिनती में एक की संख्या। (मंगल--भाषित)
रू.भे.
बरगत।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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