सं.पु.
सं.वाप, वपता, वप्प
पिता, जनक। (अ.मा., उ.र., ह.नां.मा.)
- उदा.--1..नहीं तौ माय नहीं तौ बाप। आपेज आंपै ज उपन्नौ आप। मनच्छा बीज चलावै मूळ, थयौ चर बे--चर सुक्खम थूळ।--ह.र.
- उदा.--2..उत्तम न्नप मिलियौ जई, बाप भणी धरि नेह। मन विक्स्यौ तन उल्लस्यौ, रमांचित थयौ देह।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
- उदा.--3..तूं क्यूं गणपत नांम लै, जोतै धवळौ ज्यार। गणपत हंदा बाप रौ, धवळ उठावै भार।--बां.दा.
- उदा.--4..हूकै सू निज हैत भलौ भूंडौ नह भाळै। मांहि वळै मां बाप, बारणै छांणां बाळै।--ऊ.का.
- मुहावरा--1.बाप दादा बखांणणां--किसी को गाली देते समय उसके बाप दादों तक की आलोचना करना
- मुहावरा--2.बाप बणाणौ--अत्यन्त आदर देना, पूज्य और बड़ा बनाना, स्वार्थ--सिद्धि के लिये किसी की तारीफ व मिन्नत करना।
रू.भे.
बप, बपु, बप्प, बप्पु, बापइ, बापु, बापू।
अल्पा.
बप्पड़ौ, बप्पडौ, बापड़उ, बापड़ियौ, बापङु, बापड़ौ, बापुड़ौ, बापूड़ौ, बापौ। मह.--बापड़।
पर्याय.--जणौ, जनयता, जनेता, जांमी, तात, पिता, बपता, बिरजा, बीजाकारण, वितदाता, सविता।