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बावरी     (स्त्रीलिंग--बावरण, बावरणी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.एक अनुसूचित जन.जाति जो प्राचीन काल में चोरी; डकैती व ठगाई का कार्य करती थी।
  • उदा.--मैणौ पेणू मेर, बावरी बिलळाड़ा बैता। भाळौ थोरी भील, रात रा मांगै रैता।--ऊ.का.
2.उक्त जाति का व्यक्ति।
रू.भे.
वावरी।
अल्पा.
बावरियौ।
3.देखो 'बावळी' (स्त्री.)
विशेष विवरण:-इनका निकास राजपूतों से माना जाता है। बीकानेर इलाका, पेजाब और हरियाना में 'बावरिया' और बाबरी दो पृथक पृथक कौमें हैं। बावरिया खानाबदोश होते हैं जो जंगलों में रहते हैं तथा शिकार करते है। बावरी गांवों में आबाद हैं और कृषिकर्म करते है।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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