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बास
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'वास' (रू.भे.) (ह.ना.मा.)
उदा.--
1..रस संचै मायी जुही, कीड़ी ज्यूं कण रास। घरै भेस तिजम जीरवे, बैस दुकांनां
बास
।--बां.दा.
उदा.--
2..विस्व सुबासित होय जिकै मुख
बास
हूं। मळियाचळ महकंत बसंत बिलास हूं।--बां.दा.
उदा.--
3..प्यारी न्यारी ना करू, जां लग घट में सांस। रोम--रोम में रम रही, ज्यूं फूलन में
बास
।--अज्ञात
उदा.--
4..सेत्रावा रा मांगळिया ठाकुर रांणंगदेव रै
बास
आपरी पूरव पत्नी चावड़ी सहित देवराज प्रमुख.....।--वं.भा.
उदा.--
5..ताहरां रांण भणाय राणौ बाधट पड़िहार राज करै उवै नूं जाय मिळिया, कह्यौ--म्हानूं
बास
करण ठांम द्यौ।--देवजी बगड़ावत री बात
उदा.--
6..रहिस निरालंब एकलौ, तज काया मझ
बास
। साथी तै दिन संखधर, सुरग तणै पंथ सास।--ह.र.
उदा.--
7..देस मांहे आवतां ही ओठी नू सीख दे'र बिपति रा महारणव में मग्न मांगळियांणी पुत्र सहित बेस रौ बिपर्यास करि कैराउ ग्रांम रा ठाकुर रोहड़िया बारहठ आल्हा रै
बास
जाइ रही।--वं.भा.
उदा.--
8..तळै पग छांह नवै ग्रह तांम, पगां दिगपाळ करत प्रणांम। बडा जोगीद्र बंछै पग
बास
, तुहाळा पग्गा न मेल्हूं तास।--ह.र.
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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