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बिसात  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
अ.
1.सामर्थ्य, हैसियत, पहुंच।
  • उदा.--1..राजा आपरा जीवण में थाळी तिरायां तिरै जैड़ी अर तिल उछाळियां हेटै नीं पड़ै वैड़ी भीड़ आज आपरी आख्यां सूं देखी। कांनां सुणी जकी बात सांप्रत निगै आई। राजा री कांई बिसातके इण उमड़ियोड़ा समंदर माथै काबू पा मकै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..साच रै पखै बंधणा रौ दुख दुनियां रै सरब सुखां सूं धणौ वत्तौ है। इण दुख आगै बावड़ी महारांणी रै सुखां री बिसात ई कांइ।--फुलवाड़ी
2.साहस, हिम्मत।
4.सतह, स्तर।
5.बिछौना, फर्श।
6.शतरेज या चज्ञैपड़ आदि खेलने का कपड़ा या तख्ता जिस पर खाने बने हुए होते हैं।
7.पूंजी।
8.बिसाती का कार्य।
रू.भे.
विसात।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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