सं.पु.
सं.वृद्धि
1.विवाह आदि मांगलिक कार्य।
2.मांगलिक कार्य के समय बनाया जाने वाला मिष्ठान्न।
3.उक्त मिष्ठान्न में से उतना अंश जो गजानन को चढ़ाया जाता है।
4.देखो 'विरूद' (रू.भे.)
- उदा.--1..यो जस तीन लौक प्रगटावौ, सत को सब्द विचारी। पदम भक्त नैं बिड़द दियौ दै, कथियौ कृष्ण मुरारी।--रुकमणी मंगळ
- उदा.--2..मैं तो थारै बिड़द भरोसे अविनासी, मैं तो थारे.। या जग मांही स्वांमी तुम पत राखौ, मत नै कराज्यो जग हांसी।--मीरां