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बूंदी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.वह बैल जिसके चूतड़ पर भंवरी होती है। (अशुभ) मतांतर से--वह बैल जिसके पूछ के मूल स्थान के ऊपर भंवरी हो। (अशुभ)
  • उदा.--गौ पूछौ, लांबौ पूंछौ, ढाकणियो, टाचणियौ, बीछूड़ौ, बांडियौ, कड़तौड़ी, बूंदी, स्यारौ, सपणियौ, ढोल अंगौ........।--फुलवाड़ी
2.कमर का जोड़। (सं.बिंदु)
3.बेसन व घी--शक्कर के योग से बनी एक प्रकार की मिठाई, नुक्ती। वि.वि.--बेसन को पानी या दूध में घोल लिया जाता है तद--नन्तर उसको किसी बड़े छिद्रों वाले झारे में से टपकाकर (गरम) खौलते हुए घी में तल लिया जाता है और शक्कर के रस में भिगो लिया जाता है। इसी के लड्‌डू बनते है।
4.देखो 'बूंद' (रू.भे.)
5.देखो 'बुंदी' (रू.भे.)
अल्पा.
बूंदड़ी। मह.--बूंदड़।
विशेष विवरण:-ऐसा बैल अपनी मालकिन के लिये हानिकारक माना जाता है।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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