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बेर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'वेला' (रू.भे.)
  • उदा.--पंचाळी बेर बधायौ पल्लव, करतां टेर सहाय करी। समरथ भीखम पैज साहियौ, हाथ चरण रथ तणौ हरी।--र.ज.प्र.
  • उदा.--2..सोढ़ां ऊमरकोट रां, सिर कटियां समसेर। बाहै हणिया वैर हर, बांका भारथ बेर।--बां.दा.
  • उदा.--3..मोह मिथ्यामत दूर करण कूं, प्रभु देख्या उपगारी। मोह संकट से बौत उबार्‌या, अब की बेर हमारी।--स.कु.
  • उदा.--4..साध संगत मेरो मन राजी, भई कुटंब सूं न्यारी। कोड़ बेर समझावौ मोकूं, चालूं (जूं) बुद्धि हमारी।--मीरां
  • उदा.--5..देखो तो ई ठांव कुण, बैठी जैसिह पास। बहुत बेर इण नूं हुई, यूं करता इकळास।--महाराज जयसिंह आंमेर रे धणी री वात
2.देखो 'बोर' (रू.भे.)
  • उदा.--भीलणी के बेर खाये, (कुछ) जाति नां बिचारी। कूबजा सों नेह कीनौ, गोतम नारी तारी।--मीरां
3.देखो 'बैर' (रू.भे.)
  • उदा.--1..आसकरन कितराहक साथ सुं मार ने कायलांणै ऊपर आया, गांव लूटियौ। राठौड़ां री बेर घणी बंध कीवी।--नैणसी
  • उदा.--2..पोटळिया हाकम हुआ, परदै बैठी बेर। इण कारण मूंगा हुआ, सांगर काचर केर।--मा.म.
  • उदा.--3..जदया बोली फलांण गांम रा धणी री बेर छूं अर एक सबब सो आवी हौ। मोनै थारौ आसरौ है सो तू रेवा दे।--गांम रा धणी री वात
4.देखो 'वेर' (रू.भे.) (डिं.को.)
  • उदा.--प्याला केसवदास कौऊ पाया सुहि पायां। ऐसे लिखि आंमेरपति, इस बेर बिहाया।--वं.भा.
5.देखो 'वैर' (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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