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बेळ, बेल  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.बिल्व
1.प्राय सारे भारत में पाया जाने वालाएक वृक्ष जिसकी शाखाओं पर कांटे होते है। इसके पत्ते शिवजी को पूजार्थ चढ़ाये जाते है।
2.उक्त वृक्ष का फल जो औषधि के काम आता है तथा जिसका मुरब्वा भी बनता हे। सं.स्त्री.(सं.बेल्लि)
3.वह कांमल व लम्बा पौधा जिसका तना मोटा नहीं होता तथा जो भूमि पर लम्बा फैल जाता है या किसी वप्रकार के सहारे से , पर की ओर भी बढ़ता है। लता। (डिं.को.)
  • उदा.--1..सुच्छम रोमावळि सुखद, बरणी उकति बिचार, सांप्रति रस सिंणगार री, बेल कियौ बिसतार। बेल कियौ बिसतार, मनोभव बागवां, ईखे नाभि निवांण, उपाईअनुभवां। कटि सुच्छमता हूंत, लजांणै केहरी, हर री अणिमा सिदिंध, बराबर देह री।--बां.दा.
  • उदा.--2..ग्रह तो सहस बतीस लुगाई, पिण तूं ल्यायौ नार पराई। बेल त्रिकूट मीच री बा'ई, कंथा खोटी कीध कमाई।--र.र.
  • मुहावरा--1.बेळ बढ़णी=लता का विस्तार होना।
  • मुहावरा--2.बेल मेढ़े चढ़णी=जोकार्य किया जाय उसका ठीक ढ़ंग से पूर्ण होना।
4.किसी दीवार या वस्त्र पर अंकित की हुई लता के समान या लता के आकार--प्रकार की चित्रकारी।
5.पहनने के कपड़ों पर टांके जाने वाली रेशम या मखमली फीते पर जरदोजी से बनी फूल--पत्तियां।
6.सड़क या मकान आदि बनाने के लिये जमीन पर बनाई जाने वाली चूने की लकीर जो विविध प्रकार की सीमाएं निर्धारित करती है।
7.वंश, कुल, परिवार।
  • उदा.--1..जठै झाली रांम--रांम करिऊठि नै मुखड़ा सूं कह्यौ--देवर थांरी धणी बेल पसरौ, पूत रा पोता सूं, धांन धीणौ--धापौ, घणौ राज चढ़तौ होज्यौ।--जखड़ा मुखड़ा भाटी री बात
  • उदा.--पन्ना मारूजी हौ राजाजी रौ बधजो रै बेल। बेल हो म्हारा ढोला मारूजी।--लो.गी.
  • मुहावरा--बेल बढ़णी, बेल बधणी=वंश विस्तार होना, परिवार में वृद्धि होना।
8.सहायता, मदद, रक्षा।
  • उदा.--1..संग 'जैतावत' 'साहिबौ', दूजौ 'जैत' दुझल्ल। 'जैत' कमंधां बेळ जै, भांजण देत मुगल्ल।--रा.रू.
  • उदा.--2..भव तूं जांणै भेव, वेध्यौ मछ जिण बार रौ। देव--देव सहदेव, बेल करै तो आ बखत।--रांमनाथ कवियौ
  • उदा.--3..बीदग री बेल करण री बार, अंबे थांने लागी केम अंवार--किसौरसिंह बारहस्पत्य
  • उदा.--4..तांदी धाया गच्छतति, मांदी काया मेल। चांदी खाया नह चढ़ै, बांदी जाया बेल।--ऊ.का.
11.कूए या तालाब, बंधा आदि के पानी को क्यारियों तक पहुंचाने के लिये बनाई जाने वाली नाली।
  • उदा.--मेर नै कलाल बसै। धरती हळवा 21 खेत भला। अरट 1.बेल दो छै। सैवज छिणा (चना) हुवै छै।--नैणसी
12.सहायक, मददगार।
  • उदा.--निकाळण वंक जरमन तणी नौहथौ, बबर अणसंक पतसाह चे बेल। त्रपत सुकलांग कांमंड सर नीछटण, उवह--पत्त लंदन ते रूप ऊझेल।--किसोरदांन बारहठ
13.नांव खेने का डंडा, पतवार, बल्ली।
14.एक बड़ा व लम्बा खुरपा जो हलवा आदि पकवान अधिक मात्रा में बनाने में काम आता है। (देशज)
15.ऊंट के पेट में होने वाला एक रोग विशेष।
16.घोड़ों का एक रोग विशेष जिसमें उनके पैरों में सूजन आ जाती है।
17.सीरवियों (आई--पंथियों) द्वारा बांधा जाने वाला आईजी के नाम का डोरा। (सं.द्वे)
18.दो, युग्म।
  • उदा.--जद जांगू तद एकली, जब सोऊं तबबेल। सोहणा थे मने छेतरी, वीजी तीजी हेल।--ढो.मा.
19.हाथ का एक आभूषण विशेष।
रू.भे.
बेलि, बेली, वेल, वेली।
अल्पा.
बेलड़ली, बेलड़ी, बैलड़ली, बैलड़ी। मह.--बेलड़, वेलड़।
20.देखो 'वेळ' (रू.भे.)
  • उदा.--'जगा' तणा राजसमुंद जग जांणियौ, बयण बाखांणियौ येह बारूं। 'करन' हर तमासै हेल माटे कियौ, सुंरांपत बिमासै बेल सारू।--महाराणां राजसिंह जी रौ गीत
21.देखो 'बेला' (रू.भे.) (उ.र.)
सं.पु
(फा.बेलच)
पर्याय.--बेली, व्रतति, लता। क्रि.प्र.--परसरणी, फैलणी, बढ़णी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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