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बेह
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'वेह' (रू.भे.)
उदा.--
1..हूं तो हत्थां भांमणै, बडा समत्थां
बेह
। ज्यां 'जेहा' जादव जिसौ, नर निरमियौ नरेह।--बां.दा.
उदा.--
2..दै दै लगांम कसि तंग दृढ़ जेरबंध मोहरां जड़्या। ऐराक धाट काछी उतन, घाट
बेह
ठाली घड़्या।--मे.म.
उदा.--
4..दुख भंजन तूं दाखि मुझ, नहीं तरि छंडसि देह। अग्गि कि अबला एह घरि, सेजि समारइ
बेह
।--मा.कां.प्र.
उदा.--
5..चिलकौचै
बेह
और सेवूंका विस्तार। कपूर गरभ केळी का जूथ केळूं की झूंब। स्रीफळ बिदांम और नींबू के लूंब।
उदा.--
6..
बेह
गजां थंभ रिव मंडप अंबर बणै, भड़ां घट बुझारां कमळ भमरो। ऊतरै फूलधारां चमर आरती, चढ़ै नवसेहसौं सेह चंवरी।--देविदास खिड़ियौ
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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