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बेहद, बहेद्द  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
फा.बे+अ.हद
1.जिसकी कोई हद नही हो, सीमा न हो, असीम, अपार, अपरिमित।
  • उदा.--1..पीतळ परिकर पर चीतळ कर परसै, बेहद महितळ सिर सीतळ सर बरसै। खळभळ खावणनै भ्रगसिर खळ खेधै, बावळ वरफां री तरफां सूं बेधै।--ऊ.का.
  • उदा.--2..दादू अपणी अपणी हद्द में, सब कों लेवे नांउ, जे लागै बेहद्द सौं, तिनकी मैं बळि जां
  • उदा.--3..दादू अलख अल्लाह का, कहु कैसा है नूर। दादू बेहद हद नहीं, सकल रह्या भरपूर।--दादूबांणी
2.अत्याधिक, बहुत ज्यादा, अत्यन्त।
  • उदा.--राज रांणी री बात सूं बेहद प्रसन्न व्हियौ। रूप सूं घणौ उण रा गूणां माथै रीझियौ।--फुलवाड़ी
3.जिसकी कोई गणना न हो, गिनती न हो, अनगिनत, असंख्य।
  • उदा.--लिखम्मी पग्ग धरै उर लेह, रहै सिध बुद्ध पगां तळ बेह। नमै पग छांह गोतम्म नारद्द, बदै पग गरग कपिल्ल बेहद्द।--ह.र.
4.जिसकी कोई मर्यादा या सीमा न हो, मर्यादा के बाहर हो, अमर्यादित।
  • उदा.--बेहद रा बासी हद में हांसी, आसीबिख उफणंदा है। खूटोड़ा खोळा गाफल गोळा, भोळा इस्क भणंदा है।--ऊ.का.
5.अतिशयोक्तिपूर्ण।
  • उदा.--कै अभवी काफर कहै, कहै कुपात्र कबुजात। आ हद वाळां री अकल, बेहद री नहीं बात--ऊ.का.
6.अलक्ष्य, अभेद्‌य।
  • उदा.--1..दादू रांम अगाध है, बेहद लख्या न जाइ। आदि अंत नहिं जांणिये, नांम निरंतर गाइ।--दादूबांणी
रू.भे.
बिहद, बिहद्द, विहद।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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