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बड़ी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.वटिका
1.भीगी हुई मूंग या माठ की दाल को पीसकर उसमें नमक, मिर्च, मसाले डालकर हाथों से टपकाकर सुखाया हुआ छोटा वटक या दाना, जिसका शाक बनता है।
  • उदा.--फोग केर काचर फळी, पापड़ गेघर पात। बड़ियां मेलै बांणियां, सांगरियां सोगात।--बां.दा.
2.छोटा मास पिंड, बोटी।
  • उदा.--1..उरसां ढालां ऊघड़ी, खड़ी अचांणक आय। कड़ी लियंतां कंत री, बड़ी बड़ी बिकसाय।--वी.स.
  • उदा.--कोमळ अंग न सहतौ कळियां, ताती झळियां सहै तप। घड़ी घड़ी कर तड़ी ध्रीबियौ, बड़ी बड़ी बाळियौ बप।--प्रथ्वीराज राठौड़
3.मूंज, डाभ, 'खींप' या 'सणिया' की बनी रस्सी, जेवड़ी।
  • उदा.--भूपति टोटां में दीवाळा भिळिया। मोटां मोटां रा कुळ मुंगतां मिळिया। बांधै गांठड़ियां बड़ियां चग बाळै। राली गूदड़ लै कांधै पर राळै।--ऊ.का.
4.किसी से कोई काम कराने के बदले में उसके यहां वापस काम करने की क्रिया या भाव, बदला। (सं.भृति:)
5.दैनिक मजदूर।
6.दैनिक मजदूरी के उपलक्ष में मिलने वाला द्रव्य, धन।
7.गाय या भैंस के प्रसव के तत्काल बाद निकाल कर गर्म किया हुआ दूध जो गाढ़ हो जाता है।
  • उदा.--दूधां रा सवाद अम्रत सरिखां लागै छै। सु कढ़ी रा बड़िआं रा गाटक लीजै छै। पंचाम्रत सवाद लीजै छै।--रा.सा.सं.
रू.भे.
बरी, वड़सी, वड़ि, वड़ि।
(सं.व्रती)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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