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भंवर     (स्त्रीलिंग--भंवरी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.भ्रमरं=चक्कर, गोल
नाक का आभूषण विशेष।
  • उदा.--1..वनां रे, सौनौ लंका देस रौ स रे घर आंणा, थारी रै वनड़ी रे भंवर घड़ाय, वनी तो लागै प्यारी रे, पुसबन री सुगंध सवाअी रे।--लो.गी.
  • उदा.--2..सोनो थे भल ल्यावौ, जी वना म्हारा, रूपो थे भल ल्याय। मोती समंदां पार का, जी वना म्हारा, चून्यां भंवर जड़ाय।--लो.गी.
2.पानी के बहाव में रुकावट आने अथवा अन्य किसी कारण-वश लहरों द्वारा बना हुआ आवर्त्त या चक्कर।
  • उदा.--1..चित बिपदा बारिधि पार करने के चाही। अद विच में आती नाव भंवर में आई।--ऊ.का.
  • उदा.--2..इउ वहत भंवर मज पड़ीयै आय। तांहां नाव थरर डिगमिगत ताय।--रामदांन लाळस
3.श्याम रंग।
  • उदा.--3..मेटिया केइक पीळा पमंग, सोनरे कइक धूसर सुरंग। अण थाग बेग केई भंवर अंग, रेसमी पोत किरमची रंग।--पे.रू.
4.मकान का गंदा पानी जाने के लिए जमीन में बना हुआ गड्ढ़ा।
5.गेहूं की फसल का एक रोग।
6.एक केन्द्र पर घूमे हुए बालों या रोओं का स्थान, जो स्थान विशेष पर होने के कारण शुभ या अशुभ माना जात है।
अल्पा.
भंवरी।
7.घास का गोलाकार ढेर। (सं.भ्रमर:=मस्त) (स्त्री.भंवरी)
8.वह लड़का जिसका पितामह जीवित हो। (पौता) (सं.भ्रमर:=रसिक)
9.पति, खाविंद।
  • उदा.--किम कटै पाप दुख सुख कियां, साधे ज्युं हिज सधाय लूं। इण भंवर हूंत अब दे अलख, बिधावापणूं बधाय लूं।--ऊ.का.
10.शय्याम रंग का घोड़ा।
  • उदा.--नेह निज रीझ री वात चिता ना धरी, प्रेम गवरी तणौ नाहिं पायौ। राजकंवरी जिका चढ़ी चंवरी रही, आप भंवरी तणी पीठ आयौ।--गिरवरदांन सांदू
1.श्याम रंग का, काले रंग का।
2.रसिक, शौकिन, छैल-छबीला।
  • उदा.--दारू मांस दपट्ट अमल अणमाप अरोगै। चमड़पोस रै चीठ भंवर मादक सुख भोगै।--ऊ.का.
3.मस्त, उन्मन्त।
  • उदा.--1..सो कुंवरसी बड़ौ दातार जुंझार भंवर छै।--कुं.सांखला री वारता
  • उदा.--2..चवरी ऊपर बींद जाय जिण भांत बिहसतौ बिळकुळतौ अलवलियों भंवर हुवौ थकौ ताखड़ौ कंवरां रा साथ नूं लेनै तुरी तोरिया।--प्रतापसिंघ म्होकमसिंघ री वात
4.देखो 'भ्रमर' (रू.भे.)
  • उदा.--1..जलज प्रभूपद जांण, दै सुगंध निरवांण पद। मो मन भंवर प्रमांण, रात दिवस बिलम्यौ रहै।--र.रू.
  • उदा.--2..रखी भरोसौ नाह रौ, सूनौ सदन म जांण। फूल सुगंधी फौज में, आसी भंवर उडांण।--वी.स.
अल्पा.
भंभरौ, भंवरियौ, भंवरौ, भंवर्‌ययौ, भउंरौ, भमरड़ौ, भमरडौ, भमरलउ, भमरलौ, भमरियौ, भमरौ, भमर्‌ययौ, भवरियौ। मह.--भमरांण।
(सं.भ्रमर:=भौरा=श्याम)
वि.--
(स्त्री.भंवरी) रू.भे.--भंभर, भउंर, भमर, भवंर।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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