सं.पु.
सं.
1.भक्त एक जाति विशेष या इस जाति का व्यक्ति।
- उदा.--पातर भगतण पेख, परम मन में सुख पाई। मिळियां मच्छी मार, करै ज्यूं मोद कसाई।--ऊ.का.
2.देखो 'भक्त' (रू.भे.)(म.सु.)
- उदा.--1..भेख लिया सूं भगत नहं, ह्वै नहं गहणां हूर। पोथी सूं पंडित नहीं, ससतर सूं नहं सूर।--बां.दा.
- उदा.--2..कविजन व्रंद कंवळ कुमळाया, गीत कुकवि जणू स्याळांगाया। मूरख भगतां सोर मचाया, काळी रात जरख कुरळाया।--ऊ.का.
3.देखो 'भक्ति' (रू.भे.)
- उदा.--1..राजा ब्रहदभांण पण सुभ लगन जोवाय, बड़े हरख सूं आपरी कुंवरी परणाई। भगतां पांच तथा सात भली तरह सूं करी।--पलक दरियाव री बात
- उदा.--2. थे रांम-रांम करि आवौ। अर जै पधारौ तौ भगत रौ कह्या, अर म्हांनूं खबर मेंलिया।--नैणसी
- उदा.--3. तांहरा भगत तयार हुई। ताहरां कह्यौ--कूंवर जी! थे पधारौ, भगत आरोगो।--नैणसी
- उदा.--4..नैड़ौ आयौ थौ सू जांणिया-'लाखे सूं मिळता जावां।' सू उठै आयौ। लाखै घणी आगत सागता कीवी। भगत कीवी।--नैणसी
- उदा.--5..मोटौ पह आराध करे महि, मोटौ गढ़ लीजतां मुऔ। जोय हरि भगत तुआळी 'जैमल, ' हरि सारीख प्रताप हुऔ।--जयमल मेड़तिया रौ गीत
- उदा.--6..भगत-बछळ मोदै भगत, भांज परा सह भ्रम्म। मूझ तणा क्रम मेटवा, कथूं तुहाळा क्रम्म।--ह.र.
विशेष विवरण:-यह रामावत साधुओं में से निकली हुई एक जाति है जो प्राय: जोधपुर में ही पाई जाती है। रामावत साधु इनको निम्न श्रेणीं गिनते हैं। महाराजा विजयसिंह जी के राज्य काल में कई रामावत साधुओं की लड़कियों ने गाना-बजाना सीखकर रण्डी का पेशा अपना लिया और वे भगतनें कहलाने लगी। इनमें शादी भी होती है परन्तु यह पहले ही दोनों के बीच तय हो जाता है कि पति को पत्नी पर कोई अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार यह नाम-मात्र की शादी होती है जिसे कंवरपना (कौमार्य) उतारना कहते हैं। कभी कभी कोई वर न मिलने पर गणेश जी की प्रतिमा से ही शादी करवा कर कवांरपना (कौमार्य) उतार देते हैं क्योंकि कंवारी कन्या से ऐसा पेशा करवाना पाप समझा जाता है। विवाहित होकर आने वाली बेटे की बहुएं ऐसा पेशा नहीं करती।