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भजन
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.भज्
`(सेवा करना)
1.पूजा, उपासना, सेवा।
2.ईश्वर व देवता आदि के गुणों का कीर्तन करने का कोई गीत। क्रि.प्र.--गाणौ। 3 किसी का नाम बार-बार जपते हुए स्मरण करने की क्रिया।
उदा.--
भजन
कियां सूं तेज बधैलौ, जैसे (ऊग्यौ) सूरज भांण। मीरां के प्रभु गिरधर नागर, अब तूं थारी जांण।--मीरां
रू.भे.
भजन्न, भुजन।
क्रि.प्र.--भजन-भाव।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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