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भरतर, भरतरि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.भर्तृ
1.उज्जौन के राजा इन्द्रसेन के पोते जो अपनी स्त्री अनंगसेना (जिसका दूसरा नाम पिंगला भी था) की दुश्चरित्रता से दुखी होकर विरक्त हो गए थे। इन्होंने श्रृंगार, नीति एवं वैराग्य नामक 'शतकत्रयी' ग्रन्थ की रचना की थी।
  • उदा.--राज पाट तज भरतरी, किया आंपणां काज। लोग ध्यांनराजा लहै, तौ वै क्यूं छाडै राज।--ह.पु.वा.
2.पृथ्वी। (डिं.को.)
रू.भे.
भरथरी।
सं.स्त्री.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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