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भळ, भल  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
1.बहुत, अधिक।
2.देखो 'भलां' (रू.भे.)
  • उदा.--1..ऊड़ै लोहां बूर भळ, सूर न जाय सरक्क। चढ़ै गजां दांतू सळां, रण रीझवै अरक्क।--बां.दा.
  • उदा.--2..जीवण-दाता वादल्यां, थां सूं जीवण पाय। भल लूआं बाजौ किती, मुरधर सहसी लाय।--लू
  • उदा.--3..पण राखण आया प्रभू, भल अबळा री भीर। दस हजार गजबळ घट्‌यौ, घट्‌यौ न दस गज चीर।--रामनाथजी कवियौ
3.देखो 'वळै' (रू.भे.)
  • उदा.--1..भळ दोडै निज भ्रात, छैल कुळ घर छिटकावै। प्रभु नै छोडै परौ जिकण दिस फेर न जावै।--ऊ.का.
  • उदा.--2..भल नूंती रै म्हारौ जळबळ जांमी बाप, रातादेअी म्हारी माय नै जे। भल नूंती रे म्हारा कन्हकंवर सा वीर, सैणां भतीजां भावजां जे।--लो.गी.
4.देखो 'भलौं' (रू.भे.)
  • उदा.--1..माता पितु बेटी बेटा भल मरिया, प्यारां प्यारां नैं मुसकल परहरिया। जंतर जर हरणूं अभ्यंतर जड़ियौ, पीतम प्यारी नैं परहरणूं पड़ियौ।--ऊ.का.
  • उदा.--2..भल भगवांन रा भोग, भीलणी रै घर पायां। सरस सलूणा स्वाद, जकांरी किसी वडायां। खाडा खाया खाय, कियौ थौ खाली तबरौ। माथ चढ़ावण मोल, परम प्रसाद है जबरौ।--दसदेव
  • उदा.--3..सभी अच्छे सांई, हमहिं भल नाहीं हरि सुणै। गुनेंगारी भारी बकस, हितकारी मम गुनो।--ऊ.का.
  • उदा.--4..कनक कटोरां राखजै, भल सूरत भरियौह। निबळौ क्यूं ह्वै केहरी, उण पय ऊछरियौह।--बां.दा.
  • उदा.--5..वणतइ वर जइ पहिरीयउ बागउ, भल चोली सूंधइ सूं भेव। असडी कहा देखजै ईसर, देवां? विराजइ देव।--महादेव पारवती री वेलि
  • उदा.--6..अै भल भड़ है आज रा, थाहर जासइी थेट। चंगौ साव चखावसी, इभ रमणौ आखेट।--बां.दा.
5.देखो 'भालौ' (मह., रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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