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भवन  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.गृह, मकान। (ह.नां.मा.)
  • उदा.--लालच री दौड़ै लहर, भवन बियां धन भाळ। बैठी थावर बारमौं, कांधै आंग कराळ।--बां.दा.
2.महल, प्रासाद।
  • उदा.--किण संग खेलूं होली, पिया तज गये हैं अकेली। मांणिक मोती सब हम छोडे, गाळ में पहनी सेली। भोजन भवन भलौ नहिं लागै, पिया कारण भई गैली, मोहे दूरी क्यूं मेली।--मीरां
3.देवालय, मंदिर।
4.संसार, जगत।
5.खंड, टुकड़ा।
6.छप्पय छंद का एक भेद।
7.ज्योतिष के अनुसार जन्म कुण्डली के
12.लग्नों में से एक।
  • उदा.--दसरथ 'अजन' घरे सुखदाई, रूप 'अभौ' प्रगट्‌यो रघुराई। दाखै विप्र नवै ग्रह देखो, परम गुणै प्रत भवन संपेखौ।--रा.रू.
रू.भे.
भबण, भमण, भमणि, भवण, भुवण, भौयण।
8.देखो 'भुवन' (रू.भे.)
  • उदा.--1..तीन भवन मां ताहरौ रे, झलकइ निरमल तेज। सूरति देखी ताहरी वाल्हा, हसता आवै हेज।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
  • उदा.--2..पराव्रह्म सतगुरु प्रणम्य, पुन्य सब संत नमौ। हरिरांम मुर भवन में या पद समौ न को।--स्त्री हरिरांमदासजी महाराज


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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