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भाव          (विलो.अभाव।)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.किसी वस्तु की स्थिति या होने की सत्ता, अस्तित्व, सत्ता।
  • उदा.--1..जो कुछ भाव बंदे सोई माया, यांकू नहिं परसंदा। भाव अभाव सूं परै परमानंद, सोई निजानंद कंदा। सुछंदा ग्यांनी भणीता।--सुखरांमजी महाराज
  • उदा.--2..तिलाकारीं के पड़दे जोति कें जहूर जरबफती चिगै का बणाव। गुलजारुं के क्यारे वसंतका भाव। ऐसी हवा के बीच ऐसे डंबर दरसाए।--सू.प्र.
2.अवस्था, दशा, हालत।
  • उदा.--1..वौ सोळै-सत्तरै सूं किसी भाव कम नीं लागतौ। नित रौ धड़ी दूध तौ हां करतां डकार जातौ।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..पोहरा सूं तौ कदास हाथाजोड़ी कर्‌यां, पग झाल्यां, मूंडा में तिणकौ दाब्यां बचाव व्है सकै पण भर्‌या दरबार में बीड़ौ उठायां पछै मूंडै मूंड ना दे दिंयौ कै किणी दूजा रै साथै ना रा समंचार भेज्या तौ राजाजी किणी भाव नीं छोडैला।--फुलवाड़ी
3.श्रद्धा, हार्दिक भक्ति।
  • उदा.--1..मांनै तीरथ मात नूं, विमळ भाव वणियांह। मात भलां सुख मांनियौ, ज्यां पूतां जणियांह।--बां.दा.
  • उदा.--2..चिंतमाण लधाया जांण दरसण चवूं, खळ किता दधाया दैत खाया। राव पगमंडां कर बधाया सुरांणी, अघाया भाव-रा आप आया।--खेतसी बारहठ
  • उदा.--3..अरु कंवरजी स्रीवीकौज स्रीकरनीजो रौ घणौ भाव राखै है।--द.दा.
यौ.
भावभगत, भावभगति।
4.दृढ़ प्रतीति, विश्वास।
  • उदा.--भीतर घर दृढ़ भाव, तो मांझल डूबा तिके। दुस्तर भव हरियाव, नर तरिया निरझर नदी।--बां.दा.
5.कल्पना, भावना।
  • उदा.--गुण सागर दुस्तर अगाध, अति बाध अपारण, बेळ निजर विद्‌दुसां, असह कवि भ्रमर अकारण। कळा तिमंगळ किता, वरण गुण दोस विचारक। पबे सिखर इम गुपत, किता गुण औगुण कारक। उर भरम छेह लैणौ अगम, असकत उद्यम उक्कती। कर भाव पार गुण सर करण, साचौ नांम सरस्वती।--रा.रू.
6.मन में उत्पन्न होने वाली कोई भावना, ख्याल, विचार।
  • उदा.--1..गोप त्रिया गोपाळ, जांण्वां रंग भूमै जदन। कंस लख्यौ तिण काळ, भाव प्रमांणै 'भेरिया'।--महाराजा बळवंतसिंघ-रतलांम
  • उदा.--2..इण रीति आपरा और भी बिसेस बीरां नूं बधाइ काका रा द्वार रौ कंवाड़ हौइ सेना समेत सलेम उठैही आडौ रहियौ। अर काकै भी पुळियार होइ प्राची रौ परिकर इकट्ठो करि फेर भी दिल्ली पर चलावण दृढ भाव गहियौ।--वं.भा.
  • उदा.--3..माईतां रा हुकम में ईं म्हारै वास्तै सरब आणंदउ बसै। हण हुकम में रांझौ पटकण वाळा म्हांरे सारू दुखदाई है। म्हैं तौ म्हारा भाव दरसाया। समझदारां नै समझावता म्है कोजा लागां।--फुलवाड़ी
7.प्रकृति, मिजाज, स्वभाव। (ह.नां.मा.)
  • उदा.--3..भ्रात कंठ लगाड़ै भाई, स्रीबर सुर कज बात सुणाई। त्रिलोकीराव नर भाव तन विसतारे।--र.ज.प्र.
  • उदा.--2..कंवर सरणाई साधार सुणतां ही सहाइ दे'र लार हुवौ जिकण आपरा अनादर रै आंटै अकबर जिसड़ा पातसाह थी तोड़ी तिणरौ प्रतीकार दिखावण रै काज केवळ वीर-भाव रौ जस चाहियौ।--वं.भा.
  • उदा.--3..'दक्खिण रै द्वारपाळ महामूढ सलख रा पत्र सुणतां ही अरर उठाय मांहिं लीधा। जठै भीम रा सिपाहां तोरण रै बाहिर आया जिके राजा सहित प्राकार मैं प्रकिस्ट कीधा। या बात करणगोचर पड़तां ही गढ रा सिपाह प्रामार बी अली रा अंग रौ स्परस करतां अल रा चालवा मै विलंब न होय तिण रीति सुणतां ही समीप आया। अर चक्री रा चक्र रै समांन मही रै माथै प्रतिबिंबि पाड़ता चतुरंग चक्र मेघमाळा में चंचळा रा चपळ भाव मैं चूक पाड़ता चंद्रहास चलाया।--वं.भा.
8.ओहदा, पद।
  • उदा.--पंद्रह दिन रहियां बावीसमां पातसाह तैंमूर रै गयां केड़ै प्रतिमा मात्र सोळह बरस रहियां एकबीसमां पातसाह महमूद रै मारियां पाछै बिक्रम रा ब्यौम बाजी बेद बिधु 1470 सम्मित साह रै समय मुलतांन रा सूबादार स्‌ययदमलिक सुलैमांन रै पुत्र खिजरखांन नांम तेवीसमैं पातसाह दिल्ली रौ अधिराज भाव गहियौ।--वं.भा.
9.आचरण।
  • उदा.--बिजय रा लोभी रजपूत चाहै जिण समय आइ सम बिसम जुद्ध करै। अर जनकादिक गुरुजनां नूं टाळि तिकां रै सांम्है तौ अनुगत भाव धरै।--वं.भा.
10.चित्त, मन।
  • उदा.--1. राजकंवरी तौ इण निसंक भाव सूं जिळी जांणै वांरी जुगां जूनी प्रीत व्है। राजा रांणी दोनूं उणरा पगां में पलकां बिछाय दी। अर राजकंवर आपरा हाल में ईं मस्त हौ।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..राजकंवर निरमळ भाव सूं कह्यौ--म्हारी बाई म्हारी मां री साख थारी समझ में सावळ बैठी कोनीं।--फुलवाड़ी
  • उदा.--1..पण उणरा पग झालणा अर रोवणा सूं किणी दाई रौ हीयौ नीं पसीजियौ। अकरम अर पाप नै आपरै हाथां जलम देवण सारु वै किणीं भाव राजी नीं व्ही।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2. पछै और भरम कांई तौ भूडौ अर कांई भलौ। थारै जीवण में जकौ संजोग सजियौ उणनै गाजा-बाजां रै साथै बधाव। अपांनै तौ फगत अपारां पेंखड़ा तोड़णा है, जे इण में मिनख आडौ फिरै, जोरावरी जतावै तौ उणसूं किणी भाव पड़पणौ है।--फुलवाड़ी
12.अनुराग, प्रेम, पयार।
  • उदा.--प्रीति न उपजे विरह विन, प्रेम व्यक्ति भक्ति क्यों होइ। सब झूठे दादू भाव बिन, कोटि करै जे कोइ।--दादूबांणी
13.चोचला, नखरा, नाज।
  • उदा.--दीठा भाव दिखावण, हुरकणियां रा हाथ। हात नहीं मन किमि हिचे, भेळै अस भाराथ।--बां.दा.
14.हाव-भाव।
15.सम्मान, आदर, इज्जात।
  • उदा.--'सूर' रौ कुरब्ब साह, भांति भांति कीध भाव। देखतां स राह दोइ, रौद खांन भूप राव। मेलियौ तुजक्क मीर, दीध हाथ पांनदांन। आखियौ दिलेस एम, पांति हूंत फेरि पांन।
16.झुकाव, विचार।
  • उदा.--इण कारण यो ही अधरम अनुमत मैं जांणि उणांनूं मिळाइ छळ कीधां एक भी अधम जीवण न पावै। तिणसूं गंगदेव रौ आगम जांणि पहिली सूचना करि मोनूं बुलाइ गमारां नूं म्हारौ सहायक भाव दिखावणौ।--वं.भा.
17.मन में उत्पन्न होने वाली भावनाओं या विचारों का द्योतक आभास, छाया या संकेत जो किसी के चेहरे पर स्वयंमेव लक्षित होता है।
18.किसी के मन में उठने वाले विचारों का वह मूल एवं अपरिपक्व रूप जिसमें उसका उद्देश्य व आशय निहित होता है तथा बाद में वह विकसित होकर विचार में परिणित हो जाता है।
19.कार्य, कृत्य, क्रिया।
20.ढंग, तरीका।
  • उदा.--जोगी ई जांण्यौ अेकर वळे गोता खायलूं। म्हारै डील रौ कांई घिसै। इण भाव ई सौ रुपिया मूं'घा कोनीं।--फुलवाड़ी
21.आत्मा।
  • उदा.--1. बांमणी उणी भांत काठी छाती करियां अवचळ भाव सूं राजमै'ल रै बारै' निकळी। कुण ईं रोक-टोक नीं करी।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..लक्खी री बातां सुणनै बांमणी रा जीव में थोड़ौ-घणौ थावस आयौ। वा निरांत भाव सूं बोली--काया नै राखण सारू म्हनै अधपायली कणूं का चाहीजै अर लाज ढकण सारू व्है जैड़ौ ई गाभौ।--फुलवाड़ी
22.जन्म, पैदाइश।
23.भग, योनि।
24.रति-क्रीड़ा, संभोग।
25.किसी पदार्थ, काम या वात का वह गुणात्मक अथवा धर्मात्मक तत्त्व जो उसकी मूल प्रकृति का सूचक होता है और जिसकी सता से पृथक तथा स्वतंत्र मानी जाती है। ज्यूं--सीतळ रौ भाव सीतळता।
26.किसी कथन, लेख आदि का गूढ़ार्थ, आशय, अभिप्राय, तात्पर्य, मतलब।
27.किसी पद्य या गद्य अवतरण का सारांश।
28.सांख्य के अनुसरा छ: भावों से युक्त पदार्थ जो जन्म लेता हो, रहता हो, बढ़ता हो, क्षीण होता हो, परिणामशील हो और नष्ट होता हो।
29.सांख्य में बुद्धि तत्व का कार्य, धर्म या विकार जो वेदान्त के अनुसार 'कर्म' है।
30.वैशेषिक में द्रव्य गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय ये छ: पदार्थ जिनका अस्तित्व निश्चित तथा वास्तविक माना गया है।
31.किसी वस्तु का मूल्य, कीमत या दर।
  • उदा.--1. और भाव देतां करै, लेतां और हि भाव। धाव परायौ हरण धन, साहां जात सुभाव।--बां.दा.
32.साहित्य में मानसिक अवस्थाओं का व्यंजक प्रदर्शन जिससे रस की उत्पत्ति होती है। साहित्यकारों ने इसे स्थायी, व्यभिचारी एवं सात्विक तीन वर्गों में विभक्त किया है।
33.साहित्य में नायका के यौवनावस्था में उद्‌भूत 28 अलंकारों में से एक।
34.संगीत में पांचवा अंग जिसमें गये जाने वाले गीत में वर्णित मनोभाव कोई शारिरिक चेष्टा से प्रत्यक्ष करके दिखाया जाता है।
35.जन्म कुंडली का विचार करते समय रक्खी जाने वाली ग्रहों की 12 स्थितियों में से एक। (फलित ज्योतिष)
36.ज्योतिष में साठ संवत्सरों में से आठवे संवत्सर की संज्ञा।
37.ज्योतिष में जन्म समय का लग्न।
38.उद्देश्य, हेतु।
39.कामना, वासना।
40.कर्मों के उदय, क्षय, क्षयोपशम या उपशम से होने वाले आत्मा के परिणामों के नाम। (जैन) वि.वि.--ये छ: होते हैं--
1.औदयिक भाव।
2.औपशमिक भाव।
3.क्षायिक भाव।
4.क्षायोपशमिक भाव।
5.पारिणामिक भाव।
6.सान्निपातिक भाव।
41.वस्तु का गुण या स्वभाव। (जैन)
42.किसी देवता के चढ़ाया हुआ प्रसाद।
43.विद्वान।
44.आंतरिक ज्वर, मोतीझरा एवं चेचक नामक रोग का प्रकोप। ज्यूं.--इण नै तौ माताजी रौ भाव है।
45.आंतरिक ज्वर, मोतीझरा एवं चेचक नामक रोग का नामान्तर।
46.शरीर में किसी देवता की उपस्थिति अनुभव होते हुए तदनुसार अगों का संचालन होने एवं ध्वनि होने की क्रिया। क्रि.प्र.--आणौ।
47.एक गीत (छंद) विशेष जिसके प्रत्येक चरण में 14 मात्राऐं होती हैं ताि 4, 5, 5 पर यति होती है एवं अन्त में लघु गुरु होते हैं।
रू.भे.
भाउ, भाऊ, भाय।
क्रि.प्र.--उतरणौ, गिरणौ, घटणौ, चढ़णौ, बढ़णौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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