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भावना  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.
1.अनुभव और स्मृति से उत्पन्न चित्त का एक संस्कार, विचार, खयाल, कल्पना।
  • उदा.--1..सकळ स्रस्टि का चितही कारण, कारज बहुविध ठांणी। नांना रूप भावना नांना, चवदह तबक च्यारुं खांणी।--श्री सुखरांमजी महाराज
  • उदा.--2..जद इज तौ म्हैं घड़ी घड़ी कूकूं कै थां मिनखां बिचै तौ जिनावर ई चौखा जकौ मन री भावना नै लुकावै कोनीं।--फुलवाड़ी
  • उदा.--3..पण बाप तौ दिखावटी अैड़ौ व्यवहार कर्‌यौ जांणै की अजोगती बात नीं व्ही। कै तौ डर अर लोभ रै कारण पेटा री बात होठां चढ़ै कोनीं अर कै मांयलौ अंतस ई अेक-मेक व्हैगौ। मिनखीचारा री सिरै भावनावां रौ विणास व्हैगै।--फुलवाड़ी
2.मन में उत्पन्न होने वाला किसी बात का चिंतन, ध्यान।
  • उदा.--पछै राजकंवर रै सांमी देखनै जळजळी आंख्यां कै'वण लागौ--कांटा काढ़ती वगत पंजा माथै आपरी आंगळियां रा परस सूं म्हनै म्हारी मां री याद आयगी। आपरा परस मेंम्हनै मां वाळी भावना लखाई।--फुलवाड़ी
3.श्रद्धा, भक्ति, प्रेम।
  • उदा.--1..जगदंबा कहियौ चाहै जिसौ कस्ट करौ भावना सुद्ध होय जरैं ऊ कस्ट मातंग रा न्हांण जिम व्रथा फळ बतावै।--वं.भा.
  • उदा.--2..अै तौ फगत भावना रा फूल है, म्हारी हस्त ई कांईं कै म्हैं आपरी कीं बंदगी कर सकूं।--फुलवाड़ी
4.कामना, इच्छा।
5.उत्पत्ति, प्रादुर्भाव।
6.औषध आदि को किसी प्रकार के रस या तरल पदार्थ में बारबार मिलउाकर घोटना और सुखाना जिसमें उस औषध में रस या तरल पदार्थ के कुछ गुण आ जायं।
7.शक्ति, बल।
  • उदा.--इण विडरूप जंगी खाका नै देख सा तौ पै'लाई ऊंचौ चढ़ जावै। मौत रौ रूप इण सूं तौ कीं ढाळै ई व्हैला। इमी रौ कूंपळौ अजमावण री इण डील में किण ठौड़ अर कठै भावना व्है सकै।--फुलवाड़ी
रू.भे.
भावणा।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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