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भाड़       
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.भ्राष्ट्र
1.अन्न के दाने भूनने की भड़भ जों की भट्टी या बड़ा चूल्हा।
  • उदा.--स्रंगां पाहड़ री घातां कवलां झाड़ री संका, भ्रुसंडां ाड़ री कना भाड़ री भभक। हदपां पाड़ र धाड़ धाड़ री 'बळूंत' हातां, ताड़ आंनाड़ ी बजै राड़ री तुपक।--महाराज बळूंतसिंघ जी रौ गीत
2.लाक्षणिक अर्थ में वह स्थान जहां सब कुछ नष्ट हो जाता है।
  • मुहावरा--भाड़झोंकणौं निठल्ला बैठा रहना। भाड़ फोड़णौ=महान देखो 'भट्टी'।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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