सं.पु.
स.भुजंग:
1.सर्प, सांप। (अ.मा., ह.नां.मा.)
- उदा.--अंध कूप सांर औ, भीतर काळ भुजंग। बांछे सुख नर ऐथ बस, सबळ अविद्या संग।--बां.दा.
2.शेषनाग।
- उदा.--बणाधिप झंप भरी उण बार, भुजंग न झालि सक्यौ भुव भार। भेळी हिज 'आवड़' बाहर भूप, रु नाहर चक्र सुदस्सण रूप।--मे.म.
6.राजा, नृप।
- उदा.--इण कुळ ही देवट अभिधांनी, मही भुजंग हुवौ रणमांनी। कुळ जिण रा देवड़ा कहावै, दांन समर अनुपम दरसावै।--वं.भा.
7.हट योग में, कुंडलिनी रूपी नागिन का पति या स्वामी।
8.प्राचीन भारत में राजा का एक प्रकार का नौकर।
10.चौबीस विहरमानों में से पन्द्रहवें विहरमान, श्रीभुंजंगस्वामी।
- उदा.--भुजंग देव भावइ नमुं, भगति युगति मन आंणि। भुजंगनाथ वंदित सदा, सुरनर नायक जांणि।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
रू.भे.
भमंग, भयंग, भवंग भुअंग, भुजग, भुयंग, भुयग, भुयग्गि, भुवंग, भूमंग, भूयंग, भूवंग।