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भूत     (स्त्रीलिंग--भूतण, भूतणी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.दार्शनिक दृष्टि से वे मुख्य तत्व या उपकरण जिनसे सृष्टि की रचना हुई है। द्रव्य, महाभूत। वि.वि.--दार्शनिकों ने पांच मूल भूत माने हैं जो इस प्रकार हैं--आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि। परंतु आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ये मूलभूत नहीं हैं क्योंकि ये भी कई मूलभूत द्रव्यों के संयोग से बने हैं।
2.जीव, प्राणी।
  • उदा.--आपौ पै हूंता सो तूं आप, विसंभर भूत-सरब्ब बियाप। सबै कुछ जागां बेठौ साह, मिनक्खां देवां नागां मांह।--ह.र.
3.सृष्टि का कोई जड़ या चेतन पदार्थ।
4.वीर भद्र।
  • उदा.--जाजुळी धाराळ नारसिंघ री सटा रौ जायौ, प्रळैकाळ घटा री छटा रौ जायौ पूत। रिमां धू उथाळौ चंडी रीस री रटा रौ जायौ, भाळौ किनां ईस री जटा रौ जायौ भूत।--कविराजा सूरजमल्ल मीसण
5.भृगु ऋषि का पुत्र, एक महर्षिं का नाम।
6.एक हैहयवंशीय राजा।
7.भागवत के अनुसार वसुदेव एवं पौरवी का पुत्र एक यादव राजा।
8.मृत शरीर, शव।
9.रुद्र द्वारा सती क उदर से उत्पन्न पिंगल, सनिषंग, कपर्दी तथा नील लोहित वर्ण वाले प्राणी, एक प्राचीन भारतीय मानव जाति का समूह। वि.वि.--शिव को भूतनाथ इसी लिए कहा है।
  • उदा.--कजाकणि डाकणि काढि कळेज, जिमावत साकणि जूह अजेज। चुड़ावही नूंतत भूत पिसाच, अछै रण ताळ पखाळत आच।--मे.म.
10.लोक व्यवहार में किसी मृत शरीर की आत्मा जिसे मोक्ष प्राप्त नहीं हुई हो, प्रेत शैतान, जिन।
  • उदा.--1..नैणां रा सोगन करै, भै मांनै सुण भूत। रांमत ढूलां री रमै, रांडोली रा पूत।--बां.दा.
  • उदा.--2..हाजी रा इण मकांन में उणरौ मोट्‌यार बेटौ अर बहू जिणांरै हाथां री मेंदी ही को उतरी ही नी मर गया और दोनूं अगति जाय नै भूत व्हैग्या।--रातवासौ
  • उदा.--3..पांणि मिंतरै, पावै, आकड़े में लोटौ ढुळावै, भूतणी काढै जमी मे बूरै जिंद जरू करै, खेजड़े में कीलै।--दसदोख
  • मुहावरा--1.भूत उतरणौ=आवेश समाप्त होना।
  • मुहावरा--2.भूत चढणौ, भूसवार होणौ=आवेश में आना, किसी धुन का सवार होना।
  • मुहावरा--3.भूत मरै नै पलीत=नया विघ्न उत्पन्न होना।
  • मुहावरा--4.भूत बणणौ=भस्मीभूत होना, शरीर मैल युक्त होना, किसी कार्य करने के लिए पागलों की तरह पीछे पड़ना, दततचित्त से किसी कार्य में लगना।
  • मुहावरा--5.भूत जगाणों=तांत्रिक साधना द्वारा श्मशानों में भूतों को बुलाना।
  • मुहावरा--6.भूत लागणौ=किसी को भूतादि बाहरी माया का असर हो जाना।
10.बीता हुआ समय या जमाना।
  • उदा.--त्रकाल ग्यांनदरसी निज व्रम कूं पहिचांनै। भूत, भवस्त, वरतमांन जुगति सौं जांणै।--सू.प्र.
11.व्याकरणों के अनुसार तीन कालों में से एक जो व्यतीत घटना का सूचक होता है। ज्यूं--मैं उठै कालपै गयौ हौ।
12.राक्षक, असुर।
13.पांच की संख्या। * वि.--
1.जो घटित हो चुका हो, बीता हुआ।
2.जो किसी विशिष्ट अवस्था या रूप को प्राप्त हो चुका हो। ज्यूं--भस्मीभूत।
3.जो अस्तित्व में आ चुका हो, बना हुआ।
4.समय के अनुसार व्यतीत हुवा हुआ, पुराना। ज्यूं--भूतपूर्व मंत्री, भूतकाळ।
रू.भे.
भूतक।
अल्पा.
भूतड़ियौ, भूतड़ौ
(स्त्री.भूतण, भूतणी)
क्रि.प्र.--आणौ, उतरणौ, काढणौ, चढ़णौ, निकालणौ, लागणौ। विशेष विवरण:-लोक मान्यता के अनुसार जिस मृत व्यक्ति मोक्ष नहीं होती वह भूत बन जाता है और उसका यह रूप कभी कभी लोगों को दिखाई भी देता है और अनेक प्रकार के उपद्रव भी करता है। यह भी माना जाता है कि कभी कभी यह किसी व्यक्ति विशेष शरीर में अप्रत्यक्ष रूप से प्रवेश करके उसके मस्तिष्क पर पूर्ण अधिकार कर लेता है और उसके होशहवाश बिगाड़ देता है जिससे वह बकने लगता है और पागलों की सी हरकतें करने लग जाता है।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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