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भेट
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.मिलन, मुलाकात।
उदा.--
1..साजी बाजी सुरग सिधायौ, मिळे दांन खग दुवां मद।
भेट
हुवौ नह जकौ भाजसी, कूरम धोकौ मूझ कद।--बां.दा.
उदा.--
2..मिनखां में थळियौ, जिनावरां में नळियौ अर भोजन में दळियाळी कैबत कूड़ी कोनी, सोळै आना सांची है। आं: भाग्यां सूं
भेटा
हुवै न, धोरियाळा गांव देखां।--दसदोख
2.सप्रयोजन किसी से मिलना, साज्ञात्कार करना।
उदा.--
सती जती कव सूर, मेहप मित पिंडत मुगध। जांणै भेद जरूर,
भेट
हुआ सूं भेरिया।--महाराजा बळवंतसिंह (रतलाम)
3.किसी को सम्मानपूर्वक दिया जाने वाला उपहार, सौगात, नजराना।
उदा.--
'अजण'
भेट
आंणियौ, कमध पह लिया उछब करि। विंद इंद वणि वरै, सकति रूपा बहु सुंदरि।--सू.प्र.
4.भिड़न्त, टक्कर, युद्ध।
उदा.--
भुजंगां तणी
भेट
थारा भुजा री, दिसी अंतरा रात छोटी दुजा री। सदा आंणियौ नागसी बोल सारौ, थयौ वेद पासै नकौ वेण थारौ।--नां.दा.
5.दर्शन।
उदा.--
बे कर जोड़ी वीनवुं रै, सुणिजौ थंभण पास। प्रभु परदेसइं चालतां रै, एक करूं अरदास। जीवनजी वेगी देज्यौ
भेट
।--स.कु.
6.देवता या पूज्य व्यक्ति की सेवा में भक्ति एवं श्रद्धां से अर्पित की जाने वाली वस्तु।
उदा.--
कियौ हरख कमधज्जा, निरख नायक व्रहमंडां।
भेट
ग्रांम गज भिड़ज, पूज प्रम धांम घमंडां।--रा.रू.
7.कर, टैक्स।
उदा.--
दांण, पूंछी, हल भोभ भाग,
भेट
, तलारक्षक, वद्धापन, मलवरक बल, चंचा, चारिका, गढ, वाटी, छत्र, आलहण, थोटक, कुमारादि सुखडी इति क्रमेणा रा दस करा जाता।--व.स.
रू.भे.
भेंट, भेटि।
अल्पा.
भेटड़ी।
क्रि.प्र.--आणी, चढाणी।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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