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भेर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.तरबूज, मतीरा। (सं.भेर:)
2.एक प्रकार का वाद्य, जो भेरी नामक वाद्य से आकार-प्रकार में भिन्न होता है।
  • उदा.--रोड़ि द्रुमति ढ़ोल रवद, सहनाई भेर सद्द, निफेरी भेरी निनद, नीसांण धुबे। पंचसद दमांम पूर, रुडै डूंड रिणतूर, प्रमांणै मेघ पडूर (पडर), हैरसांन हुवै।--गु.रू.बं.
3.बड़ा ढोल।
4.बड़ा नगारा। अव्य.--
1.फिर, पुन:।
2.और।
  • उदा.--कदंच जो कहां समंद री सींप तिका पण न फबै इण रै समीप। भेर जो मीढ़ां छोटी सी मीन, तिका तौ लाजां मरती हुई जळ में लीन।--र.हमीर
3.देखो 'भेरी' (मह., रू.भे.)
  • उदा.--हुई पहिरावणी हरखी राई, अंचल बंधी राजकुमार। चौरी चढियौ भोज की, बाजइ बरगूं भूगळ भेर।--वी.दे.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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