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भेरी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.भेरि:, भेरी
1.युद्ध में प्रयुक्त वाद्य विशेष।
  • उदा.--1..खेलै कळाधर धींग डंडाळां पंखाळां खमें, रणंकै भेरी बीररूप सूरा भरै रीस। खेळा मिळै बीर चंडा मारतंडा पंग खड़ै, अड़ै ऊभौ सुरतांणां चहूवांणणां ईस।--राव सत्रसाळ रौ गीत
2.तुरही के आकार का वाद्य विशेष।
  • उदा.--1..वीर भ्रदंग वाज्या, जयढक्क वाजी, समहर सांमह्या, त्रहत्रहतै त्रंबक तणै त्रहत्रहाटि त्रिभुवन टलटलिउं, भेरि भुंगळ तणै भूभूयाटि भूकिंइं भिलकि फाटी।--वं.सा.
  • उदा.--2..तूटा गज सिर करै त्रंबका, दांतूसळां वजावै डंका। गत न्नत करि सिंधू सुर गावै, वयंड सूंडची भेर बजावै।--सू.प्र.
  • उदा.--3..इण भांत री अनेक आसीस दियै छै। अैसौ गहरै साद कविराज बोलै छै, जांणै नगारै डंकौ हुवौ कना भेर घाव हुवौ। इण भांत कविराज आसीम देवधै छै।--रा.सा.सं.
3.ढोलक।
  • उदा.--भंभा भ्रदंग भेरी भुंकार बधिरीक्रत दिगंतर, रथचक्र घन-घनारवि पूरित गिरिधरणि विवर उत्फालितरज: पुंजमलिनीक्रत गगनमंडील।--व.स.
4.ढोल।
  • उदा.--विसम ढाक स ढूकस ढमढमी, भरही भर भेरि विहामणी। उच्चरी तुररी कुरूरी जसी, सुभट ना सवि रोम ज उद्धसी।--सालिसूरि


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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