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मंत्री  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.मंत्रिन्‌
1.सलाहकार या परामर्श देने वाला व्यक्ति, परामर्श दाता।
  • उदा.--जिण राजारै अनेक मंत्री बांणी रा जुद्ध में महाप्रति भट..........।--वं.भा.
2.राजा का वह प्रधान व्यक्ति जिसके परामर्श से राज्य का संचालन होता है, आमात्य।
  • उदा.--1..कवि पंडित गायक कथक, मंत्री गज भडमल्ल। तौ दरबार जिता तिता, जग चावा जेहल्ल।--बां.दा.
  • उदा.--2..भंडारी अखंड नेम आसरकन आगै, राजा दळ राज काज साजा छळ जागे। वरधमांन नंद इंद्र 'अगजीत' का मंत्री, सरव सावधांन जैसे थांन थांन जंत्री।--रा.रू.
3.राज्य के विभाग विशेष के कार्य का संचालन करने वाला व्यक्ति, (मिनिस्टर)।
4.संस्था अथवा संगठन विशेष का एक पदाधिकारी जो सम्बधित संस्था अथवा संगठन का प्रमुख कार्य भार वहन करता है, सचिव।
5.शतरंज के खेल में वजीर नाम की गोटी।
रू.भे.
मंतरी, मंत्र, मंत्रवी, मंत्रि, मितरी, मित्री।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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