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मंद  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
1.बेवकूफ, मूर्ख, मूढ। (अ.मा.)
2.कृपण, कंजूस।
  • उदा.--खत्रियां गुर आखै राव खीची, मूंठी भीची वहै मंद। नह रहै नांम सभायां नीची, सींची कीरत रहै सदा।--गोरधसिंह खीची
3.तनिक, थोड़ा। (अ.मा.)
4.कान्तिहोन, फीका, निष्प्रभ।
  • उदा.--सरद घटा जिम ऊजळी, दिस दिस अटा विलंद। नगर थटा रुख निरखियां, स्वरग छटा है मंद।--बां.दा.
5.कमजोर, क्षीण।
  • उदा.--रचियौ जिण जग राजसू, मेछां कर वळ मंद। पत कनौज दळ पांगळौ, जग जाहर जैचंद।--बां.दा.
6.जिसकी चाल, गति, पगवाह, वेग कम हो, धीमा, मंथर।
  • उदा.--तिण उपवनि झोंलै नदि तीरां। सीतळ मंद सुगंध समीरां।--सू.प्र.
7.हल्का, धीमा।
  • उदा.--1..बांकी चितबन'रु मंद मुसकांन।--मीरां
  • उदा.--2..आ छोटी मूंफाड़ किसड़ीक सोहै, औ मंद हास किण नूं न मोहै।--र.हमीर
8.खल, दुष्ट।
9.प्रभावहीन। ज्यूं--मंदविख। सं.पु.(देशज)
1.घोड़ी की गर्दन का एक रोग विशेष। (शा.हो.) (सं.मंद:)
2.चार प्रकार के हाथियों में वह हाथी जिसके वक्ष और मध्य भाग की वली ढीली, पेट लम्बा, चमड़ा मोटा, गर्दन और कांख मोटी और पूंछ की चंवरी मोटी हो। (डिं.को.)
  • उदा.--ठणै भद्र मंदां म्रगां बंस ठावा। छटा फैल हालै किनां सैल छावा।--वं.भा.
3.शनिश्चर। (अ.मा.)
4.यमराज, यम।
5.देखो 'मंद' (रू.भे.)
  • उदा.--1..नमौ जग जीवण नंद, महाविख नाग उतारण मंद।--ह.र.
  • उदा.--2..उत्तर आजस उत्तरउ, पाळउ पड़इ रवंद। का वासदर सेवियइश कइ तरूणा कइ मंद।--ढो.मा.
6.देखो 'मंदौ' (मह., रू.भे.)
रू.भे.
मंदउ।
??????? (फा.) किसी गुण या पदार्थ युक्त या सम्पन्न। ज्यूं--अकलमंद, दौलतमंद।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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