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मकड़ी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.एक प्रकार का आठ पैरां वाला प्रसिद्ध कीड़ा जो अपने मुंह से लसीला पदार्थ निकालते हुए जाल बुनता है और उसमें फंसे हुए कीट, पतंगों, मक्खियों आदि का रक्त चूमता है। (डिं.को.)
  • उदा.--1..मकड़ी का सिर माखी तोड़्‌या, जंबुक सिंध जगाया। कुंजर मगर दंत तळ चूर्‌या, हिरणी चीता खाया।--ह.पु.वां.
  • उदा.--2..मत जकड़ी भव माग, मकड़ी जाळा जेम मन। हर द्रढ़ कर पकड़ी हिया, लकड़ी हरी पळ लाग।--र.ज.प्र.
1.जाळकार।
2.जाळिक।
3.मरकट।
4.लूता। लालासाव।
2.एक प्रकार का रोग जो नीचे के होठ पर होता है। इससे होठ में सूजन आ जाती है और उसमें पीप पड़ जाती है।
  • उदा.--झाड़--बोरां जैड़ी छोटी आंख्यां लिलाड़ माथै सा 'तेक आडा सळ, मूंडा माथै खत री ठौड़ कांनी कांनी तुग्गियां ऊगोड़ी, निचला होठ माथै मकड़ी रौ भगवौ चाटौ..........।--फुलवाड़ी
3.एक प्रकार का घास विशेष। (शेखावाटी)
4.हाथी की पीठ पर 'तैहरू' कौ बांधने के कारण हाथी की पीठ के निचले भाग पर पूंछ से कुछ क्षपर रस्सी की कसावट के कारण पड़ने वाला जख्म या उससे होने वाला दाग।
4.माया। (संत साहित्य)
रू.भे.
मकरी, मक्री, माकड़ी।
पर्याय.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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