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मण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.40 सेर का एक तोल।
  • उदा.--1..कासूं काज करेह, सिंधुर बाधा सांकळां। भगवत पेट भरैह, मण नित चाहियै 'मोतिया'।--रायसिंह सांदू
  • उदा.--2..मण मण आटौ, मण मण चावळ मंगाया नै रसोई कराई, सो सरब जीमिया।--देपाळधंध री वारता
  • मुहावरा--मण मण रा घूटिया भरणा--आर्थिक संकट में जीवन व्यतीत करना, किसी बात को प्रकट नकरने के लिए दीर्धावधि तक मौन रहना।
रू.भे.
मणूं, मणू।
2.सुवृत। (डिं.को.)
3.देखो 'मणि' (रू.भे.)
  • उदा.--महाराज रघुवंस मण, सुज रांवण समथरा धुन सर पांणां धरै।--र.ज.प्र.
  • उदा.--2..मण सरद चकित निस, रति पतिह लंधणीक मंदह चलत। मिथळेस कुवरी, सीता सुतन। कवि एती ओपमा कहत।--र.ज.प्र.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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