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मति  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.मन्‌+क्तिन्‌
1.बुद्धि, अक्ल।
  • उदा.--आंह चंदन सुगम सेव्यइ, भाव संचारिक वधइ। तेत्रीस घ्रति मति स्मरण, लज्जा सोक निद्रादिक सधइ।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
2.राय, सम्मति।
3.इच्छा, कामना।
4.साहित्य के अंतर्गत एक प्रकार का संचारी भाव।
रू.भे.
मत, मती, मत्त, मत्ति, मती, मत्य।
5.देखो 'मती' (रू.भे.)
  • उदा.--1..पूत घणौं मैं पालियौ, जूंझण तूं मति माइ। हूं मोड़े आऊं हमैं, सुत दो ही समुझाइ।--वं.भा.
2.मति करौ म्हारी ब्याव सगाई, क्यूं बांधो जजाळ।--मीरां
6.देखो 'मिति' (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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