सं.पु.
अ.मसब
1.राज्य या शासन (मुगल काल) में सैना का एक उच्च पद या औहदा जिसके साथ कुछ विशेषाधिकार होते थे।
- उदा.--1..साह अवरग के पास या समै आवै। सो तो मनसब रीझ इनांम मनवंछ्या पावै।--रा.रू.
- उदा.--2..स्रीपातसाहजी महाराज नूं छाती सूं लगाय दिलासा दिवी। सिरपाव मोतियां री माळा दे सदांमंद रौ मनसब दे देस री सीख दिवी।--बां.दा.ख्यात
- उदा.--3..रांणां सूं बात हुई तद मेवाड ऊपर पांच हजारी जात, पांच हजार असवार रौ मनसब दीयौ छौ, तिण री जागीर में इतरी ठोड़ दीवी छी।--नैणसी
2.जिन मनसबों में निर्धारित संख्या के अनुसार व्यवस्थ या सैनिक संगठन होता था वे प्रथम श्रेणी के मनसब बिने जाते थे।
2.जिन मनसबों में सवारों की संख्या निर्धारित संख्या से आधी या उससे अधिक होती थी वे द्वितीय श्रेणी के मनसब माने जाते थे।
3.तृतीय श्रेणी में बे मनसब आते थी। ये जिनके सैनिकों की संख्या निर्धारित संख्या से भी कम होती थी। ये मनसब जाती, अर्थात् व्यक्तिगत सवार वाले होते थे। इसके अतिरिक्त अन्य सवार भी होते थे। अतिरिक्त सवारों की संख्या जाति सवारों से कम ही रहती थी। जैसे--हजारी जात=700 सवार, तीन हजारी जात=2000 इत्यादि।
रू.भे.
मंसब, मनसप, मनसप्प, मनसफ।
विशेष विवरण:-इस पद के साथ सैना का एक विभाग रहता था। आइने अकबरी के अनुसार बादशाह अकबर ने छोटे बड़े 66 मनसब बनाये थे। सबसे बड़ा मनसब दश हजारी था, अर्थात् दश हजारसैनिकों का संगठन (बाद में कुछ बढ़ा भी) तथा सबसे छोटे मनसब की संख्या दश थी। बादशाह की मर्जी के अनुसार ये मनसब शाहजादे, अमीर--उमराव, राजे--महाराजे या अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों को प्रदान किये जाते थे। प्राय: पांच हजार से क्षपर के मनसब शाहजादों को दिये जाते थे। मनसबों का जब निर्माण किया गया तब ऊंट, हाथी, खच्चर गाड़ियें आदि की संख्याएं निर्धारित करदी गई थी। घोड़े व हाथियों और उंटों की संख्या उनकी जातियों के अनुसार रहती थी। (देखो आईने अकबरी) उक्त निर्धारित संख्या एवं सगठन के अनुसार ही मनसब का वेतन या खर्चा तय किया जाता था। मनसबदार को अपने मनसब में यथा निर्धारित व्यवस्था रखनी पड़ती थी। राजाओं या जागीरदारों को मनसब के साथ वेतन या जागीरें दी जाती थी। पांच हजारी मनसब व उनसे नीचे वाले मनसबों की तीन श्रेणियांबनाई गई थी--