HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

मनोहर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.परमेश्वर, ईश्वर। (नां.मा., ह.नां.मा.)
2.श्रीकृष्ण। (अ.मा.)
3.एक प्रकार का संकर राग। (संगीत)
4.छप्पय छन्द का 60 वां भेद जिसमें 11 गुरु और 130 लघु से एक सौ इक्तालीस वर्ण या 152 मात्राएं होती हैं। वि.वि.--मतान्तर से इसमें 13 गुरु, 122 लघु से 135 वर्ण और 148 मात्राएं होती हैं। वि.--
1.मन को हरण करने वाला, चित्ताकर्षण करने वाला मनोज्ञ, सुन्दर। (ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..दुति बहौ सरू में डंमर। मदन फौज नीसांण मनोहर।--सू.प्र.
  • उदा.--2..सखी अमीणौ साहिबौ, मदन मनोहर गात। महाकाळ मूरत वणै, करण गयंदा घात।--बां.दा.
  • उदा.--3. महि नयर घर प्रति दीप मंडित माळ जोत मनोहरं। किर व्योम नाखत्र परखि कमळा, सोभ धारत सुंदरं।--रा.रू.
2.देखो 'मनहर' (रू.भे.)
रू.भे.
मणहर, मणहारी, मणुन्न, मणोरह, मणोरहु, मणोहर, मणोहार, मनहरू, मनुहरि, मनोवरी, मनोहारू।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची