सं.पु.
सं.
1.परमेश्वर, ईश्वर। (नां.मा., ह.नां.मा.)
3.एक प्रकार का संकर राग। (संगीत)
4.छप्पय छन्द का 60 वां भेद जिसमें 11 गुरु और 130 लघु से एक सौ इक्तालीस वर्ण या 152 मात्राएं होती हैं। वि.वि.--मतान्तर से इसमें 13 गुरु, 122 लघु से 135 वर्ण और 148 मात्राएं होती हैं। वि.--
1.मन को हरण करने वाला, चित्ताकर्षण करने वाला मनोज्ञ, सुन्दर। (ह.नां.मा.)
- उदा.--1..दुति बहौ सरू में डंमर। मदन फौज नीसांण मनोहर।--सू.प्र.
- उदा.--2..सखी अमीणौ साहिबौ, मदन मनोहर गात। महाकाळ मूरत वणै, करण गयंदा घात।--बां.दा.
- उदा.--3. महि नयर घर प्रति दीप मंडित माळ जोत मनोहरं। किर व्योम नाखत्र परखि कमळा, सोभ धारत सुंदरं।--रा.रू.
रू.भे.
मणहर, मणहारी, मणुन्न, मणोरह, मणोरहु, मणोहर, मणोहार, मनहरू, मनुहरि, मनोवरी, मनोहारू।