सं.पु.
सं.मर्कट
1.वानर, बंदर। (अ.मा., ह.नां.मा.)
- उदा.--1..म्रग मरकट मन मीन, नाव नागरी नयण नट। देख हुवै ऐ दीन, अस 'जेहल' बगसै इसा।--बां.दा.
- उदा.--2..पछट वज्र घट कुधट ऊपर। रंगट भट फुट भ्रकुट मरकट।--सू.प्र.
- उदा.--3..सूत्र सिद्धांत वखांणतां जी, सुणतां करम विपाक। खिण इक मन मांहि ऊपजइ जी, मुझ मरकट वइराग।--स.कु.
2.तांबा। (अ.मा., ह.नां.मा.)
5.एक प्रकार का विष विशेष।
रू.भे.
मंकड़, मकड़, मक्कड़, मांकड़, मांकर, मांकुण, माकड़, मारकट।
6.स्त्री संभोग का एक आसन।
7.दोहां छंद का एक भेद जिसमें 17 गुरु तथा 14 लघु होते है। (र.ज.प्र.)
8.छप्पय छन्द का आठवां भेद जिसमें 63 गुरु, 26 लघु के अनुसार 89 वर्ण व 152 मात्राएं होती है। इसमें 63 गुरु, 22 लघु के अनुसार 85 वर्ण व 148 मात्राएं भी होती है।