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मरोड़  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.मुरं
1.मोड़ने, घुमाने या ऐठन डालने की क्रिया या भाव।
  • उदा.--राजाजी मूंछ्‌या री मरोड़ विखेरता कै'वण लागा--म्हैं कंवुं तो ईं थूं म्हनै अेकलो छोडनै मत जाजै।--फुलवाड़ी
3.वात विकार के कारण पेट में होने वाली ऐंठन, दर्द, पीड़ा।
4.विरोध, शत्रुता।
  • उदा.--चेटक पमंग न दै चीतोड़ौ, कन्या न आपै गरथ करोड़। चगता रहै चतरगढ चढता, रह अकबर 'परताप' मरोड़।--रांणा प्रताप रौ गीत
6.गौरव, मान, प्रतिष्ठा, इज्जात, आन।
  • उदा.--1..नौरा ले ले पीव सूं सांभरिया तणी कहै नारी, मैल आया सारी छत्री पणा री मरोड़।--दलजी महडू
  • उदा.--2..गरज इणां री छिपावण औगुण नै कमी आपरी मरोड़ में जांणी।--नी.प्र.
7.वीरता, पराक्रम।
  • उदा.--रहै न तन धन राखियां, कीधां जनत किरोड़। मांन लहै मरदां भलां, महि सुण बात मरोड़।--प्रतापसिंध म्होकमसिंघ री वात
8.गर्व, अभिमान, धमंड।
  • उदा.--1..रंण बंकौ राठौड़ त्राह सुणै देवल तणी। मिरजा खांन मरोड़ गह लायौ गढ़ गूंजवै।--पा.प्र.
  • उदा.--2..बोर कुल्यां मांहि ऊपनौ, तोने खाय मुंडा थी थूक्यौ रे। हीये मरोड़ राखै घणी, तू जाय छै अबर चुक्यौ रे।--जयवांणी
  • उदा.--3..बरसौ दुलही दिव बधु, मन जिण आंणि मरोड़। बर कंकण वर बंधियौ, माथै धरियौ मोड़।--वं.भा.
9.नायिका द्वारा नायक के सम्मुख किया जाने वाला अभिमान।
  • उदा.--ढौल्यौ तो डगमग करे जी वना म्हारा, तकियौ करै किलोळ। बनड़ौ तो न्होरा करै जी वना म्हारा, वनड़ी करै मरोड़।--लो.गी.
रू.भे.
मड़ोड, मरड़, मरड, मुरड़।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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