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मसि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.मसि, मषी
1.काली स्याही।
  • उदा.--1..धूलि नइ तिमरि अंबर रोलिउ, सूर्‌य बिब मसि मांहि कि बौलिउ। अस्ववार फिरतां नहु सूझइं, ए रणांगणि किसि परि झूंझइ।--सालिसूरि
  • उदा.--अहर रंग रत्तउ हुवइ, मुख काजल मसि ब्रन्न। जांण्यउ गुंजाहळ अछइ, तेण न ढूकउ मन्न।--ढो.मा.
2.स्याहि, इंक।
  • उदा.--1..जन हरिदास मसकरि लागी, बहौड़ि मसी सूं मसि धोवै। कालरि बाहै खेत, साह की पूंजी खोवै।--ह.पु.वां.
  • उदा.--2..कागळ नहीं क मसि नहीं, लिखतां आळस थाइ। कइ उण देस संदेसडा, मोलइ वडइ विकाइ।--ढो.मा.
3.कालिख, कालिमा।
  • उदा.--वरिसइ मेध अनइं राति अंधारी, कुहीराब अनइं माहिं कंसारी, जवनी रोटी अनइं कागिइं बोटी, कालि नइं मसि लाई..........।--व.स.
5.काजल।
6.अंधेरा।
7.निर्गंडी का फल।
8.कृष्ण वर्ण, काला, श्याम। * (डिं.को.)
रू.भे.
मस, मसी, मस्सी, मिस, मिसि।
9.देखो 'मिस' (रू.भे.)
10.देखो 'मिस्सी' (रू.भे.)
सं.पु.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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