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मांस  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.मनुष्य, पशु व पक्षियों आदि के शरीर का वह अंश जो हड्डी के ऊपर तथा चमड़ी के नीचे रहता है तथा खून, नाड़ियों आदि से भिन्न होता हे। यह चिकना एवं मुलायम तथा लाल रंग का होता है, गोश्त, आमिष।
  • उदा.--1..जस चाहै वाहै जिकौ मांसां चूकी हड्ड। अखियातां बातां वचै, जरा काळ डर छड्ड।--बां.दा.
  • उदा.--2..लुगायां रै कूख री थैलियां अर हांचळां रै मांस री म्हनै अणूं ती भावड़ हे। मांस रै हिसाब सूं ऐ सांमी भूंडी चीजां है।--फुलवाड़ी
2.कुछ विशिष्ट प्राणियों (पशु--पक्षियों) का गाूश्त जो प्राय: खाने में काम आता हे।
3.फल का गूदा।
4.मछली।
रू.भे.
मंस, मांसु, मास।
अल्पा.
मासड़ौ।
पर्याय.--आंमिख, कासम, कीन, कव्य, तरस, तेजभव, पह, पलल, पिसित, मेदकर, रक्तभव।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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