सं.पु.
सं.मर्दल:
1.पखावज या मृदंग से मिलता--जुलता एक वाद्य। (उ.र.)
- उदा.--1..म्रद मादळ वाजै म्रदंग अउब भति उपंग। निरूपै गीत नादंग, जस न जिमै।--गु.रू.बं.
- उदा.--2..माती ऊहाड़ां दरसै मादळसी। देई बीलोई बरसै बाइळ सी।--ऊ.का.
- उदा.--3..मेघाडंबर छत्र तणउ आडंबर, सीकरी तणउ झमाल, अलंबा तणी उमाल, भेरि तणे भांकारि, झल्लरी तणे झात्कारि, संख तणे ओंकारइ, तिविल तणे दोंकारि, मादल तणे घोंकारि, ढोल तणो ढमढिमाट,..........।--व.स.
- उदा.--4..सिव मग सन्मुख थाज्यौ, धप मप दों दों। भर हर भौं भौं मादल वजाज्यौ।--ध.व.ग्रं.
2.ढोल।
- उदा.--1..आरबी बंब मादळ उभैं, धुबै नाद बादळ धजर। मो नूं बताय बेढीमणा, नाह कठी टेढ़ी नजर।--मे.म.
- उदा.--2..तलिआं तोरण ऊभीआं घरि घरि बांधीआं ए वनर वालि। मुहरइं मादळ रणकीआं तिहिं नाचइं ए नवरंगि बाल।--हीराणंद सूरि
3.मृदंग।
- उदा.--नाचती गोपी अहां क्रिस्ण गातां, मादळ वंश महूयरि वाता। हरिनी रमति ते हीइ आवि, अह्मनइ वनबयरी रो आवि।--चतुरभुज
4.न उष्ण न शीतल, शीतोष्ण। (खाद्य पदार्थ व औषघ)