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माळ, माल  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.माल:, मालं
1.किसी कस्बे या गांव की समस्त कृषि भूमि।
यौ.
आडै माळ=पूर्ण भूमि।
2.खेत, भूमि।
  • उदा.--सोरठ गुजर खंड सरीखा मुलकां तणी न पाकी माळ। मुहगौ अन पहड़ै माळागिर, मुहगौ अन अवहड़ मुदराळ।--दैवनाथ रौ गीत
3.वन, जंगल।
  • उदा.--1..पंथी मारग पांतरै, हिया फूट हिय हार। जंबक हू हू रव करै सूनी माळ मझार।--कविराजा बांकीदास
  • उदा.--2..आसा येती अमर धन, निरधन यूं जीवत। गौरी पींडा बेचती, मिरगा माळ चरंत।--अज्ञात
4.ऊंची भूमि।
  • उदा.--मदाहर पाहै घोळा माळ, दुरब्बळ भाटी देस दुकाळ।--रंगरेली वीठू
5.कंकरीली भूमि।
6.स्थान, जगह। (सं.माला)
7.कूए पर चलने वाले रहट पर घूमने वाली मिट्टी या धातु के बने जल--पात्रों की माला (टिंड)।
  • उदा.--सइजिइं जीव निरमल झलकंति, आठ पहर ठइं करम बांधति। अरहटि घटिका जिम कूइ माल, तिम जीव फिरइ अणंतउ काल।--वस्तिग
8.चरखे की डोरी जो बेलन व तकुवे को घुमाती है।
  • उदा.--ताकू तेरौ सोवणौ, लाल गुलाबी माल। चरकूं--मरकूं फिरे घेरणी, मधरौ मधरौ चाल।--लो.गी.
9.किसी चक्र को घुमाने वाली माला के आकार की रस्सी।
10.नदी।
  • उदा.--नदी जळ नील सुफील निसांण, उझेलत छीलर ढीलन आंण। बगत्तर झीवर जाळ बहंत, आवै नंह माळ रगत्तर अंत।--मे.म.
11.फसल की उपज। (मा.प्र.वि.)
  • उदा.--गुलजी कह्यौ, स्वांमीनाथ! रुपिया दसेक रौ माल पाछौ आयौ। इतरीक बाजरी, सरव रुपया दसेक रो माल पाछौ आयौ।--भि.द्र.
12.मेधमाला, घनघटा।
  • उदा.--जळ जाळ माळ विसाळ नभ जुत, उरड़ झड़ अण पार ए। मिटि जळण घरणि विनोद मांनव, भूरि सर जळ भार ए।--रा.रू.
13.अच्छी फसल पर लिया जाने वाला कर (टेक्स), राजस्व।
यौ.
माळ सेरणौ।
14.बाल, केश।
  • उदा.--मसतग माळ मूंडायकै, दाड़ी मूंछ मुंडाय। हरीया मन मूंड्‌यां विनां, निज पद कैसे पाय।--स्री हरिरांमदासजी महाराज
15.पंक्ति, कतार, श्रेणी।
  • उदा.--तुरां खुरताळ वज तूर तासा त्रंबट। माळ फरहर गजां धजां माळा।--कविराजा बांकीदास
16.देखो 'माळा' (रू.भे.)
  • उदा.--1..रांम--नांम चंगौ, रतन सो मुनिराजां माळ। पिल बांधौ बांधै गळै, गळै म बांधौ गाळ।--बां.दा.
  • उदा.--2..पत्र सुधारै जोगणी, माळ सुधारै रंभ। थंम चलेवौ सोम रवि, देखै व्योम अचंभ।--रा.रू.
  • उदा.--3..दीन अळाव फिरे गढ़ दोळा, हार सिर माळ बणाव हुवा। सात लाख झड क्षत्री सूरांरा, मेछ अठारा लाख मुवा।--महाराणा गढ़ लक्ष्मणसिंह रौ गीत
  • उदा.--4..विण तरूवर जिम वेलड़ी, कंठ विना जिम माल। पुरुस विहूणी पद्मनी, किणि परि ठेलिसि काल।--मा.कां.प्र.
(सं.माल)

माल  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.द्रव्य, धन। (नां.मा., ह.ना.मा.)
  • उदा.--1..तीडां करसण सूपिंयौ, बांनरड़ां नूं बाग। माल किराड़ां सूंपियौ, ज्यां रा फूटा भाग।--बां.दा.
  • उदा.--2..जदी चोर कहै। स्री परमेसरजी खावा दीधौ अर माल पण आछौ आयौ।--पंचमार री बात
  • उदा.--3..पछै सरव कांम आय चूका अर सरव आग मांहै पड़ियां। तद पातिसाह सइयै वांकलियै नूं साबासी दीवी। अर गढ़ मांहै आयौ तद कह्यौ--अबै माल मतां बतायी, पछै बतायी।--पताई रावळ री वात
  • उदा.--4..चारूं वेदां रै जांणकार पिंडतजी री निजर चरू माथै ही। वै मनाग्यांन हिसाब करण लागा के चरू में कित्तौ कांई माल व्है सकै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--5..जद स्वांमीजी बोल्या--कुबदी चोर हुवै ते चौरी करनैं लाय लगाव जावै। लोक तौ लाय रे धंधे लाग जावै नें आप माल लाय लगाव जावै। लोक तौ लाय रे धंधे लाग जावै नें आप माल लेय नै चालतौ रहै।--भि.द्र.
  • मुहावरा--1.माल उडाणौ (उडावणौ)=चोरी करना।
  • मुहावरा--2.माल हाथ लागणौ=धनकी प्राप्ति होना।
2.सम्पत्ति, जायदाद।
  • उदा.--1..बुद्धि सूं च्यारां ने पकड्‌या माल राख्यौ। अनै एक साथै च्यारां सूं झगड़तौ तौ कद पूगतौ।--भि.द्र.
  • उदा.--2..प्रभुता देखी पुत्र नी, राजा हुवै खुस्याल। पुण्य बिना किम पांमीयै, एलमुलक ए माल।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
3.सामान, सामग्री।
4.क्रय--विक्रय का सामान।
  • उदा.--रोळ बिगाड़ै राज नूं, मोल बिगाड़ै माल। सने--सने सिरदार री, चुगल बिगाड़ै चाल।--बां.दा.
5.स्वादिष्ट या उत्तम भोजन, पकवान।
  • उदा.--1..खुसी खुसी में ही लुंटा दी लाल, मजा--मजा में ही घुटा दियौमाल।--दस दोख
  • मुहावरा--माल उडावणौ, माल घुटावणौ=इछित भोजन करना, मस्ती छानना।
6.किसी वस्तु का सार--तत्त्व।
7.सुन्दर स्त्री।
8.युवती। (बाजारू)
9.हरताल।
10.विष्णु का एक नामान्तर।
11.छल, कपट, दगा।
12.दक्षिणि--पश्चिमि बंगाल के एक जिले का नाम।
13.मालवा देश।
14.एक प्राचीन अनार्य जाति।
15.सामर्थ्य, हस्ती।
  • उदा.--बाबर नूं जीत्यौ नहीं, 'सांगौ' साहां साल। उणरे घर रा ऊमरा, मौ आगे की माल।--बां.दा.
16.शकुन चिड़ी जो दाहिनी ओर बैठ कर शुभ शकुन देती है।
  • उदा.--लंधिया चांबिल पाछिला खाल। डावी देवी अनइ दाहिणी माल।--बीसलदेवरास
17.गणित में वर्ग का पात, वर्ग अंक।
18.देखो 'मल्ल' (मह., रू.भे.)
  • उदा.--गोविदइ स व माल सर खउ चांणूर ते चुरीउ। बीजइं बंधवि माल मोस्ि क, हणिउ तउ कंस कोपिइं चडिउ।--धनदेव गणि
  • उदा.--2..मालाखाडइ झूझइ माल, लोक तणइ मनि अतिहि साल। रवाडी न स्रीवंत करइ, खेल वाडी न गुडी आ धरइ।--नळदवदंती रास

माल  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
अ.मालूम
1.जिसकी जानगारी हो चु ी हो, जाना हुआ ज्ञात, विदित।
  • उदा.--1..अरजन री कतल करवाती बिरियां भुगाने री भू नै इयै आखी ोरपां रौ जाबक मालम नीं हो, जकी आई।--द दोख
  • उदा.--2..आगै री वात दांई पूंजी री कीनैं ह कूंत नहीं आवै, मतां रौ मालम नीं पड़ै--दसदोख
2.प्रगट, जाहिर।
  • उदा.--1..आलम सूं ालम थई, विदिसां दिसां विगत्त। असवारी कज आखियौ, आंणौ नाग उचित्त।--रा.रू.
  • उदा.--2..कं र चूंडा सुं मालम कीयौ। मंडोवर सुं रा ौड़ां नाळेर मेलीया छै।--राव रिणमल री वात
  • उदा.--3..अनंत संदेसा जीव का, लिख राख्या मन मांय। मिळिया मालम कीजसी, कागद लिख्या न जाय।--अज्ञात
3.स्पष्ट, साफ।
4.सूचित।
  • उदा.--वांसा थी साहजादाजी सुं किणहीक मालम कीयौ, 'कांबौ अबु' मेड़ते बरस 2 रहौ छै उण रौ वाकप छै।--नैणसी
1.नाव चालनक वाला नाविक, केवट। (अ.मा.)
रू.भे.
मालिम, मालुम, मालूम, मालमता, मालमतौ, मालमत्ता--सं.स्त्री.
यौ.--
1.धन, दौलत, द्रव्य सम्पति।
  • उदा.--1..माल--मता अर जगां सेठाई रै पगां, सदा सुरंगी रैती आई ही।--दसदोख
  • उदा.--2..पछै सरब कांम आय चुका। सरव रजपूतांण्या आग मांहै पड़ी, तद पातस्याह सइये वांकलिये नूं साबास दीवी। अर गढ़ मांहै आप आयौ तद कह्‌यौ--अबै माल--मता बताय? पछै बताई।--नैणसी
  • उदा.--3..पण ठग किणरा मांनै। सगळा दौळा व्हिया जकौ रोवतां--रोवतां उण रौ सगळौ माल--मतौ खोस लियौ।--फुलवाड़ी
2.व्यापारिक सामान, सामग्री।
  • उदा.--गधो दिन रा माल--मतौ उखणतौ। इण गांव सूं उण गांव में मिणिया री--मांल पुगावतौ--फुलवाड़ी
सं.पु.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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