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मावड़ी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'माता' (अल्पा., रू.भे.)
  • उदा.--1..भागळ भारथ भीड़ में, बांणी सह बिसरंत। मुख बापुड़ौ मावड़ी, भाईड़ौ भाखंत।--बां.दा.
  • उदा.--2..मैं तो मरू के जीवूं म्हारी मावड़ी। ऐ तो कमधजिये बोल्या हे रे बाल।--लो.गी.
  • उदा.--3..सांम्हउ जो इकवार मन वालइ थारी मावड़ी जी हो। नांण्यउ नेह लगार सालि भद्र सांम्हउ जोयउ नही जी हो।--स.कु.
  • उदा.--4..म्हारौ बूढ़ै बाप, म्हारी बूढ़ी मावड़ी अर म्हारा सात्यूं भाई म्हारा--नांव नै रोय रोय मरग्या व्हैला।--फुलवाड़ी


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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